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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राचीन भारतीय अभिलेख 1. 2. 3. सिद्ध हो। कृत (संवत्) 282 के चैत्र की इस पूर्णमासी को अपनी शक्ति के गुण से प्रवृद्ध महान् पौरुष से चन्द्र के प्रथमदर्शन के समान मालवगण के विषय (राज्य) में अवतार लेकर अमित धर्म से एकषष्टिरात्र यज्ञ सम्पन्न करके पितृ-पितामह के काल से सतत आगत (धर्म)धुर की विपुल यात्रामें आवृत्ति करके पृथ्वी से स्वर्ग के मध्य उत्तम यश से स्वकर्म सम्पादन से उपलब्ध आत्मसिद्धि रूप ऋद्धि का यज्ञ भूमि में माया के समान वितान करके, सारी कामनाओं की धारा धन-प्रवाह के समान ब्राह्मण, अग्नि तथा वैश्वानर (जठराग्नि अथवा परमात्मा) में हवन करके ब्रह्मा, इन्द्र, प्रजापति, महर्षि, विष्णु को स्थान देकर पाप का (मूलतः) समाप्त कर्ता; आवास (धर्मशाला) के लिये श्वेत सभा भवन, तालाब, कूप, मन्दिर, यज्ञ, दान तथा प्रजा का अमित पालन करके, राजर्षि की धर्म पद्धति का सतत अनुगमन करने का निश्चय करके, अपने गुणों के अत्यन्त विस्तार से (ऐसा प्रतीत होता है) जैसे साक्षात् मनु पृथ्वी पर मनुष्य रूप में (प्रस्तुत होकर)वैसा ही अनुभव करते हुए इक्ष्वाकु के प्रसिद्ध राजर्षिवंश मालववंश में उत्पन्न कान्ति के सर्जक प्रभारवर्धन के पौत्र जयसोम के पुत्र सोगिनेता श्रीसोम ने अनेक लाख गायें तथा चौराहे के (विशाल) वृक्ष से (अपने) शृंग का घर्षण करने वाले मस्त बैल दक्षिणा स्वरूप देकर, यूप संकट के तट उपलब्ध अपने धर्म के सेतुभूत महातडाग पुष्कर के तट पर यूप की प्रतिष्ठा की। For Private And Personal Use Only
SR No.020555
Book TitlePrachin Bharatiya Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwatilal Rajpurohit
PublisherShivalik Prakashan
Publication Year2007
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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