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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विजयसेन का देवपाड़ा शिलालेख 305 5. जिनके चरित्र-चिन्तन के परिचय से शुद्ध, सदुक्ति की (मधूक अथवा अंगूर से निर्मित) मदिरा-धारा का प्रणयन, जगत् के कानों को प्रसन्न करने के लिये, पाराशर्य (कवि) ने किया।4उसी सेन वंश में एक-एक बार में सौ-सौ योद्धा मारने के साथ ही वेद तथा वेदान्त का ज्ञाता ब्राह्मण तथा क्षत्रिय (ब्राह्मक्षत्र) कुलश्रेष्ठ सामन्तसेन हुआ। जिसके बहते सागर-जल की चञ्चल लहर के शीतलता से युक्त सेतु के छोर पर अप्सराएं राम से स्पर्धा करने युद्ध की गाथा गाती रहती हैं। 5 जिस समराङ्गण में तेज आवाज वाली दूरी से बुलाये गये शत्रु समूह में, जिसके हाथ ने कृपाण रूपी कालसर्प को खेलाया। शत्रुओं के गज समूह के टूटकर दो भागों में विभाजित होने शिरोभाग से निकले वे मोती तथा मोटी कौड़ियों से अब भी व्याप्त हो रहे हैं। 6 जिसकी शत्रुललनाओं के पथ (अथवा पानपात्र के पृष्ठ) पर हुआ उसका यश घर-घर गया, नगर-नगर, वन-वन दौड़ा, तरु तरु पर घूमा, पर्वत-पर्वत पर टिका तथा सागर-सागर में तैरा। 7 शत्रु-समूह से घिरी कर्णाट की राज्यलक्ष्मी के दुष्ट लुटेरों के विनाश का अहंकार करने वाला यही अद्वितीय वीर हुआ। इसलिये सतत चर्बी, मांस आदि स्वादु भोजन (भिक्षा) से प्रसन्न हो यमराज दक्षिण दिशा को नहीं छोड़ता है। 8 घृत के धूम से सुर्गा धत, नृगशावक में मन लगाये प्रसन्न तापसियों के स्तन के दूध से युक्त, शुक समूह को कण्ठस्थ वेद पारायण से युक्त, गंगातट जीवन को समीपवर्ती पवित्र आश्रमों से पूर्ण उत्संग का जिसने अपने अवशिष्ट जीवन को संसार के भय से त्रस्त श्रेष्ठ सन्यासियों के साथ सेवन किया। 9 10. से, अपनी भुजा से, मद मत्त शत्रु मार (काम) नामक वीर, (अथवा आरातिमार विरुदधारी) वीर अनंत अंकुरित विशुद्ध गुण समूह का महिमाशाली सदन हेमन्तसेन हुआ। 10 सिर पर, अर्धचन्द्र की चूडामणि वाले (शिवजी) की चरणधूलि, कण्ठ की दीवाल पर सत्यवाणी, कानों में शास्त्र (ध्वनि), 9. For Private And Personal Use Only
SR No.020555
Book TitlePrachin Bharatiya Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwatilal Rajpurohit
PublisherShivalik Prakashan
Publication Year2007
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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