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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org धंगदेव का खजुराहो अभिलेख 26. जिसके दोनों चरणों का नमन करते नृपों के मस्तक से गिरने वाले पुष्पों से पूजे जाते हैं। 28. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 265 कालञ्जर से लगाकर, मालव नदी के तट पर ( विदिशा) स्थित भास्वान् (सूर्य मन्दिर) से, यमुना नदी के तट से लगाकर इधर चेदि देश पर्यन्त; और उस आश्चर्यजनक गोपगिरि (ग्वालियर) पर्यन्त विस्तृत, शक्तिशाली बाहु-बल से सहज अर्जित भूमि पर जो शासन करता है। जो त्याग, विक्रम, विवेक, कला, विलास, प्रज्ञा, प्रताप, वैभव आदि का अपने चरित्र से उत्पत्ति स्थान है। उसी कृती ने 27. देवताओं के मन में अचानक इस अकाल कलियुग की समाप्ति की शंका को उत्पन्न कर दिया। 46 शब्दानुशासन के ज्ञाता देद्द के पुत्र माधव कवि ने इस प्रशस्ति की रचना की। जिसके कवि यश को पुलक- कञ्चुक वाले ( पुलकित होकर) आप्तजन (बड़े बूढे) कथाओं में कहते हैं। 47 जयगुण के पुत्र संस्कृत भाषा के ज्ञाता गौड़ करिणकजद्ध ने कुतूहल से मनोरम अक्षरों में इस प्रशस्ति को लिखा । 48 राजा पृथ्वी का पालन करें, तीनों वेद धर्म बढ़ते रहें, गाय तथा ब्राह्मण प्रसन्न रहें तथा प्रजा सम्पन्नता (पूर्णता) प्राप्त करे। For Private And Personal Use Only संवत् दस सौ ग्यारह (1011) में इसे रूपकार (मूर्तिकार) ने उत्कीर्ण किया। श्री विनायक पालदेव के भूमिपालन के समय निर्दग्ध शत्रुओं से वसुधा प्राप्त की। भगवान् वासुदेव को प्रणाम । सविता सूर्य को प्रणाम ।
SR No.020555
Book TitlePrachin Bharatiya Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwatilal Rajpurohit
PublisherShivalik Prakashan
Publication Year2007
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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