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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 264 प्राचीन भारतीय अभिलेख जो लक्षवर्म राजा के शरत् चन्द्र के समान यश को प्रशस्त वाणी से कहना चाहता है वह मूढ दोपहर के सूर्य को दीपक के उजाले में पहचानने का प्रयास करता है? 37 जिस वामन ने सरल मन वाले बलि को बहाने से आपत्ति में डाला तथा पृथ्वी लांघने से लघु पापविनाशक पद प्राप्त किया। लोक तथा अलोक के सैंकड़ों सिर से सूर्य की ज्योति प्रतिहत नहीं होती, चन्द्रमा की कान्ति स्पर्धा करने वाला उसका शुभ्र यश उसका अतिक्रमण करता है। 38 दिग्विजय में धीर, क्रीडा-तडाग में प्रचण्ड प्रतापधारी, अशेष शत्रुओं से निर्भय हो दोनों तटों पर सेना रख, स्नान करते मत्त गजों से इन्द्र के समान श्री लक्षवर्मा ने 23. क्रमशः यमुना तथा गंगा को पंकिल कर दिया। 39 नृपों के प्रासादों में, मुनियों की भूमि पर, सज्जनों के संगम (जमावड़े) में, गांव में, नीच अथवा मूखों की मण्डली में, बनिया वाड़ी (बनियों की गली) में, चौराहे पर, मार्ग कथाओं में, धनपतियों के घर ... सर्वत्र सभी सदा चकित होकर केवल उसी के गुणों की प्रशंसा में चहक रहे हैं। 40 शरत् के पूर्ण चन्द्रमा के समान जिसके प्रसन्न मुख के कोप से शत्रु-रमणियों के सिंदूर के संभार से रहित मुख-कमल तथा हार-वलय से रहित पयोधर-चक्र भी व्यक्त हो रहा है। 41 स्वर्ण कलश से मनोरम शोभित सूर्य के समान चमकते उसने यह लम्बे बांस पर फहराता ध्वज-पट-वितान कमल समूह सा डोलता धारण किया। हिमाचल के शिखर की स्पर्धा करने वाले भगवान् वैकुण्ठ के मंदिर के परिवृद्ध होते राग को देख जहां देवता भी एकत्र होकर चकित हो रहे हैं। कैलास से भोट राजा और शाही कीर राजा ने मित्रता के उपहार पहुंचाये। हेरम्बपाल के पुत्र देवपाल से वैकुण्ठ की यह मूर्ति शत्रुहन्ता क्षितिधर तिलक श्रीयशोवर्मा ने प्राप्त की। 43 अपनी बाहु से स्पष्ट ही पृथ्वी को प्रसाधित कर राज्य को स्थित करने वाला प्रजा का आनन्दकारी श्रीधंग पुत्र उससे उसी प्रकार उत्पन्न हुआ जैसे समुद्र से चन्द्रमा। युद्ध में शत्रुसमूह को नष्ट करते हुए जिसकी वीर भी स्तुति करते हैं। सदा For Private And Personal Use Only
SR No.020555
Book TitlePrachin Bharatiya Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwatilal Rajpurohit
PublisherShivalik Prakashan
Publication Year2007
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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