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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - 128 प्राचीन भारतीय अभिलेख 7. से एवं कहीं अपनी केसर के अमित (पूर्ण) भार से झुके सरोज से सरोवर सुशोभित हैं। 8 जहां के (उप)वन, अपने ही पुष्पभार से अवनत तथा मदमत्त मधुपों के गुञ्जन से युक्त तरुवर एवं सतत संचरणशील पुरनारियों से अलंकृत हैं। जहां के भवन फहराते ध्वज तथा रमणियों से युक्त एवं नितांत शुभ्र और अत्युन्नत होने के कारण, विद्युल्लता से बहुरंगी मेघखंड के समान होने से उपमान बन रहे हैं। 10 अन्य भवन (अपनी ऊंचाई में) कैलास के समुन्नत शिखरों के समान सुशोभित हो रहे हैं, वे चबूतरे तथा बड़ी-बड़ी छतों से युक्त हैं, वे संगीत (गीत, वाद्य तथा नृत्य) की ध्वनि से मुखर हैं, जिनकी भित्तियों को (विविध) चित्रों से अलंकृत किया गया है तथा जो चञ्चल कदली-वन से सुशोभित हैं। 11 पूर्ण चन्द्र की किरणों के समान जहां के स्वच्छ शुभ्र भवन मंजिलों की पंक्ति से ऐसे सुशोभित होते हैं मानो धरा को विदीर्ण कर उपस्थित विमानों की पंक्ति हो। 12 जो (नगर) लाल लहरियों वाली दोनों रमणीय सरिताओं से आलिङ्गित ऐसा सुशोभित हो रहा है मानो एकान्त में (पीन) पयोधरों वाली प्रीति तथा रति से (आलिंगित) कामदेव का शरीर हो। 13 सत्य, क्षमा, संयम, शान्ति, नियम, पवित्रता, धैर्य, स्वाध्याय, नम्रता, स्थिरता, मेधा (अथवा दृढ़ निश्चयात्मिका बुद्धि) से युक्त; विद्या तथा तप के आगार, अहंकार रहित (संस्कार तथा विद्या से सम्पन्न) विप्रों से पूर्ण यह (नगर) उसी प्रकार सुशोभित हो रहा है जैसे चमकते ग्रहों से नभोमण्डल। 14 इसके पश्चात्, आकर सतत साथ रहने से प्रतिदिन क्रमशः बढ़ती मित्रता वाले ये शिल्पी, नृपों के द्वारा पुत्र सा सम्मान पाकर प्रसन्न हो, नगर में सुखपूर्वक रहने लगे।15 इन कलाकारों में से कुछ तो मधुर संगीत में सुनिष्णात थे तथा कुछ सुंदर चरितों से सम्पन्न विचित्र कथाओं के ज्ञाता; कुछ विनीत एवं शान्त (अथवा For Private And Personal Use Only
SR No.020555
Book TitlePrachin Bharatiya Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwatilal Rajpurohit
PublisherShivalik Prakashan
Publication Year2007
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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