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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुमारगुप्त बन्धुवर्मा का मंदसौर शिलालेख 129 12. नम्रता के कारण शान्त प्रकृति के) थे तथा कुछ धार्मिक स्थितियों में लीन, एवं कुछ लोग प्रिय, कोमल तथा लगातार हितकारी बातें करने में चतुर थे। 16 10. कोई अपने (बुनने के) कर्म में सुनिपुण थे तथा अन्य संयमी ज्योति:शास्त्र के वेत्ता और (उनमें से कुछ रणपटु, जो अब भी शत्रुओं की (बलपूर्वक) अत्यंत हानि करते रहते हैं। 17 कुछ बुद्धिमान, मनोरम बंधुओं एवं प्रख्यात तथा श्रेष्ठ कुल से सम्पन्न और वंशानुरूप सच्चरित से भी अलंकृत हैं। वे सत्य परायण, स्नेहियों का उपकार करने में पटु तथा विश्वसनीय गाढ (अभिन्न) मित्र हैं। 18 सांसारिक विषय-लिप्सा पर विजय प्राप्त वाले आचार से धार्मिक, कोमल, अत्यंत शक्तिशाली, लोकयात्रा (व्यवहार) में देवतुल्य, अपने कुल के सिरमौर, वासना रहित, उदार आदि सद्गुणों से सम्पन्न से यह शिल्पियों की श्रेणि अधिक सुशोभित हो रही है। 19 यौवन की कान्ति से सम्पन्न होने पर भी, स्वर्ण-हार ताम्बूल, पुष्प आदि से अलंकृत होने पर भी, नारियां तब तक परम शोभा नहीं पातीं जब तक वे रेशमी वस्त्र का जोड़ा न पहन लेतीं। 20 स्पर्श में सुहाने, विभिन्न वर्गों के विभाजन से विचित्र, आंखों को लुभावने रेशमी वस्त्रों से जिन लोगों ने इस सम्पूर्ण धरा को अलंकृत (आच्छादित) कर दिया है। 21 विद्याधरियों के सुंदर, पल्लव से निर्मित कर्णाभरण के वायु से (सतत) डोलने के समान जगत् को अत्यंत अस्थिर (क्षणभङ्गुर) समझ कर 13. तथा मानवीय (अपने) विा समूह को अपार मानकर उन्हीं (शिल्पियों) ने (सूर्यमंदिर निर्माण का) शुभ विचार दृढ़ कर लिया। 22 चारों समुद्र के तट जिसकी चंचल करधनी है, सुमेरु तथा कैलास जिसके पीन पयोधर हैं, वन में बिखरे विकसित पुष्प ही जिसका हास है ऐसी मेदिनी पर कुमारगुप्त के शासनकाल में । 23 शुक्र तथा बृहस्पति के समान मेधावी, धरा के (समस्त) नरेशों में 14. मूर्धन्य तथा रण में अर्जुन के समान (युद्ध) कर्म में निपुण, (प्रजा का) रक्षक विश्ववर्मा राजा हुआ। 24 जो दीनों पर दया करने में निरत, दरिद्रता से दु:खी जनों को सहयोग देने For Private And Personal Use Only
SR No.020555
Book TitlePrachin Bharatiya Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwatilal Rajpurohit
PublisherShivalik Prakashan
Publication Year2007
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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