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पक्ष्यणसारो * * * * * ६९ जहा खरो चंदणभारवाही
भारस्स भागी न हु चंदणस्स। एवं खु नाणी चरणेण हीणी नाणस्स भागी न हु सोग्गईए ॥ १९ ॥
( आवश्यकनियुक्ति १०० ) नाणं च दंसणं चेव चरित्तं च तवो तहा। एयमग्गमणुपत्ता जीवा गच्छंति सोग्गइं ।। २० ॥
( उत्तराध्ययनसूत्र-२८-३ ) अंबत्तणेण जीहाइ कूइया होइ खीरमुदगम्मि । हंसो मोत्तूण जलं आपियइ पयं तह सुसीसो ॥ २१ ॥
( बृहत्कल्पभाष्य ३४७ ) जं कल्लं कायव्वं अज्ज चिय तं करेह तुरमाणा । बहुविग्धों य मुहुत्तो मा अवरण्हं पडिक्खेह ॥ २२ ॥
( जीवदयाप्रकरण ११५ ) लब्भंति सुंदरं चिय सम्वो घोसेइ अप्पणो पणियं । केइएण वि घित्तव्वं सुंदरं सुपरिक्खिउं काउं ।। २३ ।।
( नानावृत्तकप्रकरण ६) विज्जारहमारूढो मणोरहपहेसु भमइ जो चेदा । सो जिणणाणपहावी सम्मादिट्ठी मुणेदव्यो ।। २४ ।।
( समयसार २३६ )
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