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* पाययकूसुमावली
जीवे न हणइ अलियं न जंपए चोरियं पि न करेइ । परदारं पि न वच्चए घरे पि गंगादहो तस्स ॥१४॥
(नानावत्तकप्रकरण ५८)
सो पंडिओ त्ति भण्णइ
जेण सया नेय खंडियं सीलं । सो सूरो वीरहडो इंदियरि उनिज्जिया जेण ॥१५॥
(जीवदयाप्रकरण १०५) सो सव्वस्स वि पुज्जो
सव्वस्स वि हिययआसमो होइ । जो देसकालजुत्तं पियवयणं जाणए वुत्तुं ॥१६॥
(जीवदयाप्रकरण ११४) जदि पडदि दीवहत्थो अवडे
___किं कुणइ तस्स सो दीवो। जदि सिविखऊण अणयं करेदि किं तस्स सिक्खा फलं ॥१७॥
(मूलाचार-समयसाराधिकाराः १५) सुचिरं पि अच्छमाणो वेरुलिओ कायमणिओमीसे । न य उवेइ कायभावं पाहन्नगुणेण नियएण ॥१८॥
(ओघनियुक्ति ७७२)
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