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* पाययकुसुमावली
पेच्छइ य तयं कुंकुमपिंजरियं वेसलोयपरियरियं । वरवत्थपिहियछिन्नोट्टनासियं चिंतए तत्तो ।।२३।। दुक्खेण जो विढप्पइ अत्थो दुक्खेण भुज्जए सो उ । चोरचरडाण पायं चरियं एवंविहं होइ ।।२४।। इय चिंतिउं मसाणे पत्तो सो पिच्छइ तयं गत्तं। कलसजुयलेण रहियं अहियं तो विलविउं लग्गो ॥२५॥ हा देव दव्वनासो कह जाओ मज्झ मंदपुण्णस्स । सच्चं चिय जं केण वि विउसेणं पढियमेवं ति ।।२६।। न य मे दिन्नं दाणं न विलसियं विविहभोगभंगीहि । नासो वि य लच्छीए जाओ तो जामि रायउले ॥२७॥ सव्वं कहेमि रन्नो जइ वि हु अप्पावए इमाउ धणं । तो कोसल्लियपुव्वं साहइ रन्नो जहा देव ॥२८॥ उज्जाणे जो विलसइ विविहपयारेहिं सो धुवं चोरो। मह दव्वं उक्खणिउं गहियं इमिणा मसाणाओ ।।२९।। इय सुणिउं नरवइणा भणिओ आरक्खिओ जहा। सिग्घं आणेसु मज्झ पासे बंधेउं तं महाचोरं ॥३०॥ तेण वि तहेव विहिए तेणो जंपेइ मज्झ को दोसो। भणइ निबो तइ अत्थो गहिओ एयस्स उक्खणिउं ॥३१॥ सो भणइ देव इमिणा गहियं मम संतियं किमवि अत्थि। तो अप्पावसु तो हं दविणं एयस्स अप्पिस्सं ॥२२।।
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