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बोहिदुल्लह कहा
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५३
रन्ना दिट्टिक्खेवे कयम्मि वज्जरइ सो वणी । न मए गहियं किंचि वि एयस्स जपए तो इमं तेणो ॥३३॥ पइसमखिन्नो नरपहु तत्थाहं आसि निब्भरं सुत्तो। नासावंसो सवणा य कड्डिया मह इमेणेव ॥३४॥ ता मह एसो सवणाई अप्पिउं लेउ अप्पणो दव्वं । इय भणिओ सो सेट्ठी सविलक्खो ठाइ इत्तो य ॥३५॥ जइया इमस्स अप्पिहिसि सेट्ठी सवणाइयं तया दव्वं । (लहिहिसि तं इइ भणिउंइ विसज्जिया दो वि नरवइणा ॥३६॥ तो सेट्ठी गिहपतो पुत्तं पन्नवइ जायवेरग्गो । जह लच्छी वच्छ गया खणेण तह जीवियं जाही ॥३७॥ जम्माउ जर। लोए जराउ मच्चू अवस्स देहीणं । तम्हा मच्चुमुहगया जीवा जीवंति थेवदिणे ॥३८॥ ता जइ तै परलोए गहिउं सद्धम्मसंबलं जंति । ता धुवमसोयणिज्जा सुहिया य हवंति तत्थ गया ॥३९॥
( सिरिलक्खणगणिरइयं सुपासणाहचरियं पा. ५२३-५२५)
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