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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बोहिदुल्लह कहा * * * * * ५१ तेण वि तहेण विहियं छिन्ना नासा वि ओ?उडसहिया । तेण वि सव्वं सहियं दब्वट्ठा जेण इय भणियं ॥ १३ ॥ तं नत्थि जं न कुव्वंति पाणिणो साहसं दविणकज्जे । नियजीवियं पि विच्चंति किं पुणो छेयणं तणुणो ॥ १४ ॥ तो कप्पडियं मडयं कलिऊण गओ गिहम्मि सो सेट्ठी । सुयपरिकलिओ इत्तो कप्पडिएणावि हु झडत्ति ॥ १५ ।। उ8ऊणं गहियं तं दव्वं गोवियं च अन्नत्थ । गहिउं कित्तियमेत्तं पत्तो नयरम्मि गिण्हेइ ॥१६॥ वत्थागरुकप्पूरप्पमुहाइं निवसणेण सुहुमेण । पच्छाइयलयअंगो विलसइ वेसाण गेहेसु ॥ १७ ॥ अह अन्नया य सो वि हु गच्छइ उज्जाणे । मोयगमंडगवडयाइं नेइ तत्थप्पणा सद्धि ॥१८॥ नयरस्स पाउलाई वि तेणं सद्दावियाइं सव्वाइं । हिट्ठो ताण पयच्छइ भोयणवत्थाइयं सव्वं ।। १९॥ तह मग्गणाण जम्मं गिराण दीणाइयाण वि जहिच्छं । ते वि हु तुट्ठा वण्णंति कण्णनामं विहेऊण ॥२०॥ तो जणपरंपराए तं सोउं तस्स संकिओ सेट्टी। मम दव्वं नो गहियं तट्ठाणाओ इमेणं ति ॥२१॥ जइ पुण सो कप्पडिओ तइआ सासं निरंभिरं थक्को.। इय चितंतो तस्स वि पलोयणत्थं गओ तत्थ ॥२२॥ पापी For Private And Personal Use Only
SR No.020552
Book TitlePayaya Kusumavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhav S Randive
PublisherPrakrit Bhasha Prachar Samiti
Publication Year1972
Total Pages169
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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