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मुक्खत्तणस्स पाहुडो
(घनश्याम अपनेको 'महाराष्ट्रचुडामणि' कहता था और कंठरव 'उपाधि लगाता था। उसका समय ई. स. १७०० से १७५० तक था । वह महान् ग्रंथकार था। उसने १८ वें वर्ष लेखन शुरू किया और ६४ ग्रंथ संस्कृत में, २० प्राकृत में और २५ मराठी में लिखे हैं ऐसा उसने कहा है। राजशेखर के 'कर्पूर मंजरी' के सदृश उसने 'आनंद सुंदरी' नाम का सट्टक लिखा है । यहाँ विदूषक अपनी मूर्खता से बाघ का चित्र देखकर भयभीत होता है
और दूसरे को भी भयभीत करता है । बाघ का नाम सुनते ही आनंदसुंदरी चिल्लाकर राजा को आलिंगन देती है । विदूषक की मूर्खता से ही राजा को उसका आलिंगन सुख मिलता है ; इसलिए राजा अपने हाथ से रत्नजडित सुवर्णकडा पारितोषिक के रूप में देता है। यह प्रसंग नाटककारने बहुत विनोदपूर्ण ढंगसे चित्रित किया है। इसमें गद्यमाग शौरसेनी और पद्यभाग माहाराष्ट्री में लिखा है।
स्वत:ला ' महाराष्ट्रचूडामणी' म्हणवून घेऊन ' कंठी रब' बिरुद वापरणारा घनश्याम हा कवी इ. स, १७०० ते १७५० या काळात होऊन गेला तो महान ग्रंथकार असून त्याने वयाच्या १८व्या वर्षां पासून लेखणास सुरवात केली. त्याने ६४ ग्रंथ संस्कृतात, २० प्राकृतात व २५ मराठीत लिहिले
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