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थावच्चापुत्तस्स पव्वज्जा
( श्वेतांबर-जैनागम के अंग विभाग में 'नायाधम्मकहाओ' ( ज्ञाताधर्मकथा: ) नाम का छठा ग्रंथ है । इस ग्रंथ में मेधकुमार, शैलक, भ. मल्ली, देवकी आदि के चरित्र दिये हैं। तथा कूर्मक, तुंबक चार वधूनों, आदि की रूपक कथाएं भी दी है। यहाँ स्थापत्यापुत्र ने इस संसार में जरा, रोग मृत्यु अटल होने के कारण आत्म-तारण के लिए धर्म के सिवा दूसरा कोई मार्ग नहीं है इस लिए २२ वें तीर्थंकर भगवान अरिष्टनेमि के चरणकमलों में भगवती दीक्षा स्वीकार की' यह बतलाया है।
श्वेतांबर जैनागमाच्या अंगविभागात 'नायाधम्मकहाओ' (ज्ञाताधर्म कथा: ) नावाचा सहावा ग्रंथ आहे. या ग्रंथात मेघकुमार शैलक, भगवानमल्ली, देवकी, इत्यादींचे चरित्र असून कूर्मक तुंबक, चार सुनादि रूपक कथाही दिल्या आहेत. म्हातारपण, रोग, मृत्यू अनिवारणीय असल्या मुळे धर्माशिवाय मात्मतारण होणार नाही म्हणून स्थापत्या पुत्राने भगवान अरि. ष्टनेमी तीर्थंकरच्या चरणापाशी भागवती दीक्षा घेतली, हे सांगितले आहे.)
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