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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुलवहू (धी जयसिंहसूरि ने 'धर्मोपदेशमालाविवरण' नामकधर्म कथा ग्रंथ की रचना ई. स. ८५८ में की है। इसमें ९८ प्राकृत गाथाएँ हैं। उनमें निर्दिष्ट की गई कथाएँ विवरण में विस्तार से कही हैं। इसमें गद्य-पद्य मिश्रित अनेक उपदेशात्मक धर्मकथाएँ हैं। यहाँ जवानी के उन्माद से विच. लित हुई कुलवधू को कर्तव्यतत्पर बना कर शीलपालन में कैसे स्थिर किया, यह कहा है। श्री. जयसिंहसूरींनी 'धर्मोपदेशमालाविवरण' या धर्मकथाग्रंथाची रचना इ. स. ५५८ मध्ये केली. यात मळ ९८ प्राकृत गाथा असून गाथांमध्ये निर्दिष्ट केलेल्या कथा विवरणामध्ये विस्ताराने सांगितल्या आहेत. यात गद्य-पद्यमिश्रित उपदेश वजा अनेक धर्मकथा आहेत. येथे तारुण्यसुलभ उन्मादाने विचलित झालेल्या कुलवधूस कर्तव्यतत्पर बनवून शील पाळण्यात कसे स्थिर केले आहे, हे सांगितले आहे.) पुंडवद्धणे नयरे एगो इब्भजुवाणओ संपुण्णजोव्वणं नियय-२ जायं मोत्तूण गओ देसंतरं । समइक्कंताणि एक्कारस वासाणि । For Private And Personal Use Only
SR No.020552
Book TitlePayaya Kusumavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhav S Randive
PublisherPrakrit Bhasha Prachar Samiti
Publication Year1972
Total Pages169
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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