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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 72/पाण्डुलिपि-विज्ञान स्तुति की है, अपने गुरु को स्तुति की है ? फिर क्या अपना तथा अपने कुटुम्ब का परिचय दिया है और क्या रचना का रचनाकाल दिया है ? कहीं-कहीं ये बातें ग्रन्थ के अन्त में होता है । यह 'पुष्पिका' कहलाती है । प्रायः ग्रन्थ के अन्त में अनुक्रमणिका भी होती है, और प्रलोक ज्या दे दी जाती है । इनकी टीप लेना भी आवश्यक है। ___ जो हस्तलिखित ग्रन्थ आपको उपलब्ध हुए हैं यदि उनमें से कुछ ऐसे हैं जो छप चुके हैं तो भी उनकी अवहेलना नहीं करनी चाहिये । वे बहुत मूल्यवान सिद्ध हो सकते हैं । कभीकभी उनमें भाषा-विज्ञान की दृष्टि से अनोखी वीजें मिलने की सम्भावना रहती है। वे पाठालोचन में उपयोगी हो सकते हैं । अब यह देखना चाहिये कि उस ग्रन्थ की भाषा किम प्रकार की है। उसमें कितने प्रकार के कितने छन्द हैं और कौन-कौन से विषय ग्रन्थ में आए हैं, उन विषयों का ग्रंथ में किस प्रकार उल्लेख किया गया है ? पांडुलिपियों में साधारणतः तिथियाँ खास ढंग से दी हुई होती हैं। बहुधा ये तिथियाँ और संवत् 'अंकानां वामतो गतिः' के अनुसार उलटे पढ़े जाते हैं । फिर यह देखना चाहिये कि उस ग्रंथ की शैली क्या है ? उसमें स्फुटपद हैं अथवा वह प्रवन्धकाव्य है, आदि से अन्त तक समस्त ग्रंथ छंद में ही लिला गया है या बीच-बीच में गद्य भी सम्मिलित है, गद्य किस अभिप्राय से किस रूप में आया है, इन बातों का भी टीप में विवरण दिया जाना चाहिये । विवरण प्रस्तुत करने का स्वरूप इस प्रकार ग्रन्थ तक पहुँच कर और उससे कुछ परिचित होकर पहली आवश्यकता होती है कि उसका व्यवस्थित विवरण प्रस्तुत किया जाय । यहाँ हम कुछ विवरण उद्धृत कर रहे हैं, जिनसे उनके वैज्ञानिक या व्यवस्थित स्वरूप की स्थापना में सहायता मिल सकती है। उदाहरण : कुब्जिकामतम् का 1898-99 में महामहोपाध्याय हरप्रसाद शास्त्री ने एशियाटिक सोसायटी प्राव बंगाल के तत्त्वावधान में नेपाल राज्य के दरबार पुस्तकालय के ग्रन्थों का अवलोकन किया और उन ग्रन्थों का विवरण प्रस्तुत किया। उसमें से एक ग्रन्थ 'कब्जिकामतम्' का विवरण यहाँ दिया जाता है। (क) (29।का) (ख) कुब्जिकामतम् (कुलालिकाभ्नायान्तर्गतम्) (ग) 10X1. inches, (घ) Folio, 152 (ड) Lines 6 on a page (च) Extent 2,964 slokas, (छ) Character Newari, (ज) Date ; Newar Era 229, (भ) Appearence, Old (st; Verse. BEGINNING ॐ नमो महाभैरवाया संकर्ता मण्डलान्ते क्रमपदनिहितानन्दशक्तिः सुभीमा शृस्टक्षाढ्यं चतुष्कं अकुलकुलनतं पंचकं चान्यपट्कम् । चत्वारः पंचकोऽन्यः पुनरपि चतुरस्तत्वती मण्डलेदं संस्टष्टं येन तस्मै नमत गुरुतरं भैरवं श्रीकुजेशम् ।।2।। 1. Sastri, H. P.--A Catalogue of Palm leaf and Selected Paper MSS belonging to the Durhar Library. Nepal. For Private and Personal Use Only
SR No.020536
Book TitlePandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1989
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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