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पांडुलिपि-प्राप्ति और तत्सम्बन्धित प्रयत्न : क्षेत्रीय अनुसन्धान/71
उद्योगों का पूरा विवरण देना चाहिये । उसमें ये बातें रहनी चाहिये : गाँव का परिचय, जिसके यहाँ ग्रन्थ मिलता है उस व्यक्ति का नाम, उसकी जाति, उसके माँ-बाप का परिचय, उसकी पीढ़ियों का संक्षिप्त इतिहास तथा यह सूचना भी कि वह ग्रंथ उनके घर में कब से है। इस प्रकार उस ग्रन्थ का उस घर में आने और रहने का पूरा इतिहास उस डायरी में सुरक्षित हो जायगा । कितने ग्रन्थ आपको मिले और वह किस दशा में थे, वेष्टनों में लपेटे हुए रखे थे या यों ही ढेर में पड़े थे ? यह उल्लेख करने की भी जरूरत है कि वे ग्रन्थ पत्रों के रूप में हैं या सिली पुस्तक के रूप में । ग्रन्थकार या रचयिता का समस्त उपलब्ध परिचय दें। जिस व्यक्ति के पास वह ग्रन्थ है उस व्यक्ति से रचयिता के सम्बन्ध का पूरा परिचय भी दें। ग्रन्थ का लेखक कौन है ? यह ग्रन्थकार किस समय हुआ ? ग्रंथ और उसके लेग्नक के संबंध में कुछ किंवदन्तियाँ प्रचलित हों तो उन्हें भी डायरी में लिख लेना चाहिये।
अब पहला प्रयत्न तो यह करना चाहिए कि जिन ग्रन्थों का पता लगा है, उन्हें प्राप्त कर लिया जाय । यदि आपको ग्रन्थ भेंट में या दान में मिल जाते हैं तो वहुत अच्छा है, किन्तु यदि मूल्य से भी प्राप्त हो जाते हैं तो भी सफलता में चार चाँद लगे माने जाते हैं। किमी पांडुलिपि का मूल्य निर्धारण करना कठिन कार्य है । जिन क्षेत्रों में पांडुलिपियों के महत्त्व के विषय में चेतना नहीं है वहाँ से नाममात्र का मूल्य देकर पुस्तकें पांडुलिपियाँ प्राप्त की गयी हैं किन्तु जिस क्षेत्र में यह चेतना आ गयी है, वहाँ तो ग्रन्थ के महत्त्व का मूल्यांकन कर ही मूल्य निर्धारित करना पड़ेगा । ग्रन्थ का महत्त्व उसके रचना-काल, उसमें वणित विषय की उत्कृष्टता, उसकी लेखा-प्रणाली का वैशिष्ट्य, उसमें दिये चित्र तथा सज्जा की कला आदि अनेक बातों पर निर्भर करता है।
मूल्य देकर प्राप्त या भेंट, दान में प्राप्त ग्रन्थों के सम्बन्ध में विक्रेता या दाता से प्रमाण-पत्र लेना भी अत्यन्त आवश्यक है। इसमें विक्रेता या दाता यही लिखेगा कि यह ग्रन्थ उसकी अपनी सम्पत्ति है और उसे उसके हस्तान्तरण का अधिकार है। यदि ग्रन्थ का स्वामित्व न मिल पाये तो भी ग्रन्थ का विवरण अवश्य ले लेना चाहिये । विवरण लेना
यदि ग्रन्थ घर ले जाने के लिए न मिले तो समय निकाल कर ग्रन्थ के मालिक के घर पर ही उसकी टीप ले लें । साधारण परिचय में सबसे पहले उस ग्रन्थ के आकार-प्रकार का भी परिचय दें। इसके बाद आप देखें कि वह कितने पृष्ठ का है, उसकी लम्बाई-चौड़ाई
और हाशिया कितना और कैसा है ? हाशिया दोनों ओर कितना छूटा हुआ है और मुख्य लिखावट कितने भाग में है । यह नाप कर हमें लिख देने की आवश्यकता है । उसमें कुल कितने पृष्ठ हैं और उनमें से सभी पृष्ठ हैं या कुछ खो गये हैं, पूरी पुस्तक में पृष्ठ कहाँ-कहाँ कटे-फटे होने से हमें सहायता नहीं पहुंचाते, छन्दों की संख्या कितनी है, किसी छन्द का क्रम भंग तो नहीं है, अध्याय के अनुसार तो छन्द नहीं बदले गये हैं ? एक पूरे पृष्ठ में कितनी पक्तियाँ हैं ? इस तरह हरेक पृष्ठ की पंक्तियाँ गिनना जरूरी है। यह भी देखना होगा कि उसका कागज किस प्रकार
यहाँ तक ग्रन्थ का बाहरी परिचय पाने का प्रयत्न हुआ ।
अब हम ग्रन्थ के अन्तरंग की ओर चलते हैं। इसमें तीन बातें देखनी चाहिये, पहली बात तो यह देखनी होगी कि प्रारम्भ में ग्रन्थकार ने क्या किसी देवता या राजा की
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