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142/पाण्डुलिपि-विज्ञान
का बाँटा एकत्रित होने पर तौल लिया जाता था। यदि एक-दो दिन बाद में तौलने का कार्यक्रम होता तो पक्की चाँक लगाई जाती थी। पक्की चाँक लगाने के लिए गीली मिट्टी में गोबर मिला दिया जाता था और उस भीले मिश्रण को अन्न की राशि के घेरे पर छिड़क कर उस पर वाँक का ठप्पा लगाया जाता था।
__ सम्भवतः मिट्टी पर लेख अंकित करने का यह प्रारम्भिक तरीका था। बाद में कच्ची ईटों पर लेख कोर कर उन्हें पकाया जाने लगा । लम्बा लेख कई ईंटों पर अंकित करके पकाया जाता और फिर उनको क्रमात् दीवार पर लगा दिया जाता था । यह प्रथा बौद्धकाल में बहुत प्रचलित रही है। उनके धार्मिक सूत्र आदि इंटों पर खुदे हुए मिले हैं । मथुरा के संग्रहालय में ऐसे नमूने देखे जा सकते हैं।
कुछ राजाओं ने अश्वमेघ यज्ञ किए । इनके विवरण इंटों पर अंकित कराये गए। देवी मित्र, दामभित्र एवं शील बर्मन के अश्वमेघ यज्ञों के उल्लेख के ईंटों के अभिलेख मिले हैं । ये अभिलेख ईंटों पर अंकित कराने के बाद अश्वमेघ के चत्वरों में लगा दिए जाते थे । मृण्मय मुथाएँ (Seal) बहुत मिली हैं। नालंदा में मृण्मय घट (धड़े) विशेषतः मिले हैं । इन पर ने व अंकित हैं । इनका सम्बन्ध भी किसी धार्मिक कृत्य से रहा है ।
लिपि विकास का अध्ययन करते हुए यह विदित होता है कि मेसोपोटामिया में उरुक या वर्का में 'उरुक युग' में ईंटों पर पुस्तकें लिखी मिली हैं। एक हजार ईंटे, क्यूनीफार्म या सूच्याकार लिपि में लिखी मिली हैं। पेपारस ... ईसा से कोई पाँच शताब्दी पूर्व ग्रीक (यूनानी) लोगों ने मिस्र से पेपायरस' नामक
1. ( भारतीय प्राचीन लिपिमाला, पृ० 151 । 2. बौद्ध धर्म के ईटों पर लिखे गए ग्रन्थों के विवरण के लिए देखें-निंघम, ASR, Vol. I,
p.47, Vol. II, पृ० 124 आदि । 3. डिरिजर रहोदय के ये शब्द इस सम्बन्ध में ध्यातव्य हैं
"The earliest extant written cuniform documents, consisting of over one thousand tablets and fragments, discovered mainly at Uruk or Warka, the Biblical Ereeh, and belonging to the 'Uruk period of the Mesopotamian predynastic period, are couched in a crude pictographic script and probably sumerian language".
-(Diringer, D. -The Alphabet, p. 41.) 'पेपायरस' एक बर या सरकण्डे की जाति का पौधा होता है जो दलदली प्रदेश में बहुतायत से पंदा होता है । मिस्र में नील नदी के किनारे व मुहाने पर इसकी खेती बहुत प्राचीन काल से होती थी। यह पौधा प्राय: 5-6 फीट ऊंचा होता है और इसके डण्ठल साढ़े चार से नौ-साढ़े नौ इञ्च लम्बे होते हैं। इसकी छाल से पतली चित्तियां निकाल कर लेई आदि से चिपका लेते थे उसी से लिखने के लिए पत्न बनाते थे। पहले इन पत्रों को दबाकर रखा जाता था फिर अच्छी तरह सुखाया जाता था। सूख जाने पर हाथी-दाँत या शंख से घोंटकर उन्हें चिकना बनाया जाता था. फिर विविध आकारों में काट कर लिखने के काम में लिया जाता था। इस तरह तैयार किये हुए लेखाधार लिप्यासन को योरोप वाले 'पायरस' कहते थे और इसी से पेपर शब्द बना है। पेपायरस के लम्बे-लम्बे लिखे हए खरड़े मिस की कब्रों में बड़े-बड़े सन्दूकों में रखी लाशों के हाथों में या उनके शरीरों से लिपटे हुए मिलते हैं। जो लगभग ईसा से 2000 वर्ष तक पुराने हैं । इनके नष्ट न होने का कारण मिस की गरम और सूखी जलबायु है ।
-भारतीय प्राचीन लिपिमाला, पृ. 16
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