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अवदेहन
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अवन्ती
अवदेहन नपुं., अव + vदिह से व्यु., क्रि. ना., अत्यधिक ए. व. - पञ्चम्यवधिस्मा, पदत्थावधिस्मा पञ्चमी विभत्ति भरपूर कर देना, परिपूर्ण कर देना - तो प. वि., ए. व. - होति, मो. व्या. 2.28. तम्हि उदरं अवदेहनतो उदरावदेहकन्ति वुच्चति, दी. नि. अवधीयति अव + vधा के कर्म. वा. का वर्त., प्र. पु., ए. अट्ठ. 3.195.
व. [अवधीयते], व्यवस्थापित या निर्धारित किया जाता है, अवधारण नपुं., अव + vधर के प्रेर. से व्यु., क्रि. ना. प्रयोग में उतारा जाता है - करणभूतेन वा अवधीयति [अवधारण], निश्चय, निर्धारण, संपुष्टि, समर्थन, परिसीमित अवत्थापीयति अप्पीयतीति सोतावधानं, पटि. म. अठ्ठ. 1.11. कर देना - णे सप्त. वि., ए. व. - स्वप्पे वधारणे मत्तं, अवनत/ओणत अव + निम का भू. क. कृ. [अवनत], अपचित्यच्चने खये, अभि. प. 1117; हा खेदे सच्छि पच्चक्खे, नीचे की ओर सिर को झुकाया हुआ, विनम्र- अवनतं सिरो धुवं थिरावधारणे, अभि. प. 1159; अवधारणे निच्छयो, सद्द. यस्स, सो यं अवंसिरो, सद्द. 1.102. 3.885; याव, इति, एवं, खो, नो, एव जैसे निपा. के अर्थों की अवनति स्त्री., स. प. में प्रयुक्त [अवनति], नीचे की ओर सीमा को निश्चित करने के अर्थ में अत्यधिक प्रयुक्त, याव झुकना, पतन, हास, निराशा - पब्बतो अनुन्नतो अनोनतो, - याव सद्दोवधारणे... अवधारणमेत्तकता परिच्छेदो ... एवमेव खो, महाराज, योगिना योगावचरेन उन्नतावनति न अवधारणे ति कि, याव दिन्नं ताव भुत्तं नावधारयामि कित्तकं करणीया. मि. प. 356. मया भुत्तं, मो. व्या. 3.4; अथो - अथोति निपात्तमत्तं. अवनथ त्रि., ब. स., तृष्णा से मुक्त, तृष्णारहित - थो पु., अवधारणत्थे वा, महाराज, ते आगतं दुरागतं न होति, पे. व. प्र. वि., ए. व. - वनथं न करेय्य कुहिञ्चि, निब्बनथो अट्ठ. 218; इति - इच्चस्स वचनीयन्ति आदिसु अवधारणे, अवनथो स भिक्खु, थेरगा. 1223; यो हि सब्बेन सब्ब सद्द. 2.317; एव - एवावधारणे जेय्य, यथत्तं तु यथातथं, नित्तण्हो, ततो एव कत्थचिपि नन्दिया अभावतो अवनथो, अभि. प. 1152; एवं - एवं नो एत्थ होती ति आदीसु थेरगा. अठ्ठ 2.439. अवधारणे, स्वायमिध आकारानिदस्सनावधारणेसु दहब्बो, दी. अवनी स्त्री.. [अवनी], पृथ्वी, धरती - पुथवी जगती भूरी भू नि. अट्ठ. 1.28; च - चकारो अवधारणत्थो, एवकारो वा अयं । भूतधरावनी, अभि. प. 182; छमा वसुमती उब्बी अवनी कु
सन्धिवसेनेत्थ एकारो नट्ठो, सु. नि. अट्ट, 1.61; - णत्थ त्रि., वसुन्धरा, सद्द. 1.81; - निं द्वि. वि. ए. व. - कुट्ठी एको ब. स. [अवधारणार्थ], विनियमन या परिसीमन के प्रयोजन पकुप्पित्वा हत्थेन आहनियावनिं, चू. वं. 37.153; - निपाल वाला - त्थो पु., प्र. वि., ए. व. -- चकारो अवधारणत्थो, पु., तत्पु. स. [अवनिपाल], राजा, शासक - लो प्र. वि., सु. नि. अट्ठ. 1.61; - त्थं नपुं.. प्र. वि., ए. व. - ए. व. - सुचिरं अवनिपालो सञमं अज्झुपेतो, दा. वं. चसद्दग्गहणमवधारणत्थं..., क. व्या. 79; - फलत्त नपुं. 4.5; - पति/पती पु.. उपरिवत - विसालतेजो विजयस्सिरि भाव., निश्चायन अथवा परिसीमन का सङ्केतक होना - त्ता तदा लभी परक्कन्तिभुजो वनीपति, चू, वं. 83.52; अथावनिपती प. वि., ए. व. - सब्बानिपि वाक्यानि एवकारत्थसहितानियेव गन्त्वा अनुराधपुरं तहिं, चू. वं. 88.80; - निस्सर पु., तत्पु. अवधारणफलत्ता, इतिवु. अट्ठ. 20; सब्बानि हि वाक्यानि स. [अवनीश्वर]. पृथ्वी का स्वामी, राजा - अथोपकार एवकारत्थसहितानियेव अवधारणफलता तेसं... उदा. अट्ट, 11. संबुद्धसासनस्सावनिस्सरो, चू. वं. 81.40. अवधारित त्रि., अव + Vधर के प्रेर. का भू. क. कृ.. अवन्ततण्ह त्रि., वन्ततण्ह का निषे. [अवान्ततृष्ण], वह, [अवधारित], निश्चित किया गया, निर्धारित किया गया - जिसकी तृष्णा शान्त नहीं हुई है, अशान्त तृष्णा वाला - गमने विस्सुते चावधारितोपचितेसु च, अभि. प. 797; - ते ण्हा पु., प्र. वि., ब. व. - अवीततण्हा अविगततण्हा पु., सप्त. वि., ए. व. - हत्थदाढनरिन्देन तस्मिं अत्थेवट अचत्ततण्हा अवन्ततण्हा, महानि. 34-35; - हासे उपरिवत् रिते. चू. वं. 47.4.
- हीना नरा मच्चुमुखे लपन्ति, अवीततण्हासे भवाभवेसु. सु. अवधारेत्वा अव + Vधर के प्रेर. का पू. का. कृ. [अवधार्य], नि. 782; अवीततण्हासेति अविगततण्हा, महानि. अट्ठ. 123. सुनिश्चित करके - अयं सम्पत्ति पापणितान्ति च अवधारेत्वा अवन्ती 1. स्त्री., एक जनपद या नगर - वेदे भिन्दित्वा, सु. नि. अट्ठ. 2.50.
कालिङ्गा वन्तिपञ्चाला वज्जी गन्धार-चेतयो, अभि. प. 184; अवधि पु., [अवधि], किसी भी क्रिया के किए जाने का एवं अवन्ती अवन्तियो ति आदिना पि नामिकपदमाला प्रारम्भिक बिन्दु, बिलगाव का बिन्दु या स्थल -स्मा प. वि., योजेतब्बा, सद्द. 1.205; - सु सप्त. वि., ए. व. - आयस्मा
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