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अपगब्म
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अपचायति
रहित - अद्विकानि अपगतसम्बन्धानि दिसा विदिसा पर्यन्तभाग - नेतन्ते चित्तकेपाङ्ग सिद्धत्थो सापने जिने अभि. प. विक्खित्तानि, दी. नि. 2.219; अटिकानि अपगतसम्बन्धानीति 1116; 2. नपुं, आंखों के छोरों या किनारों पर लगाए गए आदिका एका अद्विकानि सेतानि सङ्घवण्णपटिभागानीति एका, काजल की रेखा - नेत्तन्ते चित्तकेपाङ्ग, सिद्धत्थो सासपे जिने, दी. नि. अट्ठ.2.326; - साखापलास त्रि., ब. स. अभि. प. 1116; अवङ्ग करोन्तीति अक्खी अञ्जन्तियो अवङ्गदेसे [अपगतशाखापलाश], शाखाओं तथा पत्तों एवं पंखुड़ियों से अधोमुखं लेखं करोन्ति, चूळव, अट्ठ. 129-130. रहित, बिना शाखाओं एवं पत्तों वाला - एवमेव भोतो अपच त्रि., [अपच], शा. अ. नहीं पकाने वाला, ला. अ. गोतमस्स पावचनं अपगतसाखापलासं अपगततचपपटिकं ___गृहस्थ जीवन की तुच्छ वृत्तियों को ग्रहण न करने वाला - अपगतफेग्गुकं सुद्ध, सारे पतिद्वितं, म. नि. 2.166; - अनागारे पब्बजिते, अपचे ब्रह्मचारयो, अ. नि. 3(1).76%3; सुक्कधम्म त्रि., ब. स. [अपगतशुक्लधर्म], कुशलधर्मों से अपचे ब्रह्मचारयोति ब्रह्मचारिणो अपचयति, नीचवुत्तितं नेसं रहित, अच्छे गुणों से विहीन - कथहि नाम मे तातो आपज्जति, अ. नि. अट्ठ. 3.130. अपगतसुक्कधम्म निल्लज्ज नग्गभोग्गं उपसङ्कमित्वा पहें अपचन्त त्रि., vपच के वर्त. कृ., पचन्त का निषे. [अपचन्]. पुच्छिस्सति, जा. अट्ठ. 7.116; - सोक त्रि०, ब. स. शा. अ. नहीं पकाने वाला, ला. अ. पवित्र जीवन-वृत्ति [अपगतशोक], शोक-रहित, शोक न करने वाला - अत्थस्स वाला - पचन्तो अपचन्तस्स, अममस्स सकिञ्चनो, जा. सत्था सोकविनोदनं धम्मकथं कत्वा अपगतसोकं कल्लचित्तं अट्ठ. 4.334; अपचन्तापि दिच्छन्ति, सन्तो लद्धान भोजनं. विदित्वा ... अगमासि, पे. व. अट्ठ. 33.
जा. अट्ठ. 4.58; अपचन्तापीति इदं सत्था जेतवने विहरन्तो अपगब्म त्रि., [अपगर्भा], 1. देवलोक में उत्पत्ति देने वाले एक दानवित्तं भिक्खं आरभ कथेसि, जा. अट्ठ. 4.56%3B गर्भ में न आने वाला, हीन गर्भ वाला - गब्भतो अपगतोति अपचन्तापि सन्तो सप्पुरिसा भिक्खाचरियाय लद्धम्पि भोजनं अपगभो, अभब्बो देवलोकूपपत्तिं पापुणितुन्ति अधिप्पायो हीनो दातुं इच्छन्ति, जा. अट्ठ. 4.58. वा गब्भो अस्साति अपगब्भो, अ. नि. अट्ठ. 3.202; 2. भविष्य अपचय पु., अप + चि से व्यु., क्रि. ना. [अपचय], शा. में गर्भग्रहण न करने वाला - गब्भतो अपगतोति अपगब्भो, अ. क्षय, हानि, हास, घटाव, कमी - खयेच्चने चापचयो, अ. नि. अट्ठ. 3.202; अपगब्भताय धम्म देसेति, अ. नि. कालो समयमच्चुसु, अभि. प. 1082; तस्स असारत्तस्स . 3(1).28; महाव. 311; तस्मा सो तंअपगभतं अत्तनि सम्परसमानो ... विहरतो आपत्तिं पञ्चुपादानक्खन्धा अपचयं गच्छन्ति, म. अपरम्प परियायं अनुजानाति, पारा. अट्ठ. 1.100.
नि. 3.348; ला. अ. 1. कर्मों का क्षय, पुनर्जन्म का अपगब्म त्रि., पगब्भ का निषे., अप्पगम के अन्त. द्रष्ट.... निरोध - आचयाय संवत्तन्ति नो अपचयाय, चूळव. 422; अपगम पु., अप + गम का क्रि. ना. [अपगम], दूर चला सेक्खो अपचयेन न तप्पति, जा. अट्ठ. 3.302; ... अपचयस्स जाना, अदृश्य हो जाना, विलुप्त हो जाना, नाश - वीरियारम्भस्स वण्णं भासित्वा भिक्खूनं तदनुच्छविकं ... भुसत्थापगमाधिक्यपुब्बकम्मनिवत्तिसु, अभि. प. 1185; ... आमन्तेसि, महाव. 51; ला. अ. 2. अर्चना, सम्मान - सुखदुक्खानं अपगमे सातासातप्पटिक्खेपवसेन ... पाकटा खयेच्चने चापचयो, कालोसमयमच्चुसु, अभि. प. 1082; - होति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).288; पण्डुपलासो बन्धना गामी त्रि.. [अपचयगामिन्], शा. अ. क्षय या हास की पवुत्तो तिआदीसु अपगमे, म. नि. टी. (मू.प.) 1(1).166; ओर ले जाने वाला, ला. अ. कर्म अथवा पुनर्जन्म के क्षय आकासे पवत्तितविआणस्स अपगमातिक्कमतो चतुत्थाति की ओर ले जाने वाला - सम्मादिट्टि ... सम्माविमुत्तिसब्बथा ... वेदितब्बा, ध. स. अट्ठ. 253.
अयं वुच्चति, ... अपचयगामी धम्मो ति, अ. नि. 3(2).210%; अपगमन नपुं.. [अपगमन]. उपरिवत् - पच्छिमेन पञआय कुसला अपचयगामिनी पहानतण्हा, नेत्ति. 72; - याराम
अपगमनं, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).15; खु. पा. अट्ठ. 91.. त्रि., ब. स. [अपचयाराम], कर्मों या पुनर्भवों के क्षय में अपग्घरणक त्रि., पग्घरणक का निषे. [अप्रघ्ररणक], पिघल आनन्द अनुभव करने वाला, कर्मों के क्षय में रत - सेक्खा कर बाहर की ओर न बहने वाला - मासातिक्कमेन पनस्सा अपचयारामा, अप्पमत्तानुसिक्खरे, स. नि. 1(1).272; सोकेन अस्सूनं अपग्घरणकालो नाम नाहोसि, जा. अट्ठ. 7.31. अपचयारामाति वट्टविद्धंसने रता, स. नि. अट्ठ. 1.307. अपङ्ग/अवङ्ग/अपाङ्ग पु./नपुं.. [अपाङ्ग], 1. आंख का अपचायति अप + vचाय का वर्त, प्र. पु., ए. व. [अपचायति], बाहरी छोर या किनारा, आंख का प्रान्तभाग, नेत्र का पूजा-अर्चना करता है, कृतज्ञतापूर्वक सम्मान प्रकट करता
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