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अन्दुक 345
अन्ध अन्दुक पु., [अन्दुक], हाथों या पैरों को बांधने वाली बेड़ी, द्वारेहि असुचिं ... अन्धो विय अहोसिं थेरगा. अठ्ठ. 2.33; हाथी के पैरों को बांधने वाली जजीर - नीत्थी त निगळोन्दुको, अतित्थिया, भिक्खवे, परिब्बाजका अन्धा अचक्खुका, उदा. अभि. प. 364.
146; भिक्खु अन्धमकासि मारं, ..., म. नि. 1.217; अन्दुकहापण पु., तत्पु. स. [अन्दुकार्षापण], कैदी के बेड़ी अन्धमकासि मारन्ति न मारस्स अक्खीनि भिन्दी, म. नि. से मुक्त होने पर प्राप्त शुल्क या पुरस्कार - अन्दुबन्धनेन अट्ठ. (मू.प.) 1(2).67; ला. अ. ख. नपुं., तम अथवा बद्धस्स विस्सज्जनेन लभमानकहापणो बन्धकहापणो, म. तिमिसा के साथ प्रयुक्त होने पर, अंधेरा, घना अंधेरा, नि. टी. (मू.प.) 1(2).251.
अज्ञान का अंधकार, धुंधलापन - अन्धन्तमं धनतमे, अभि. प. अन्दुघर नपुं., तत्पु. स. [अन्दुगृह], कारागार - तथेव त्वं 72; अन्धतमं तदा होति, यंलोभो सहते नरं इतिव. 61; ला.
सब्बभवे, पस्स अन्दुघरे विय, बु. वं. 303; तत्थ अन्दुघरेति अ. ग. त्रि., नहीं देख सकने वाला, देखने में अक्षम - बन्धनागारे, बु. वं. अट्ट. 121; यथा अन्दुघरे पुरिसो, चिरवुत्थो उभोपि नेत्ता नयना, अन्धा उपहता मम, चरिया. 377; ङ. दुखट्टितो, जा. अट्ठ. 1.28.
अतीक्ष्ण, भोथड़, स्थूल, केवल स. प. में पू. प. के रूप में अन्दुबन्धन नपुं., तत्पु. स. [अन्दुबन्धन], बेड़ी द्वारा बांध प्रयुक्त, अन्धनख के अन्त. द्रष्ट; - करण नपुं.. दिया जाना, बेड़ी का बन्धन - बन्धनगता सब्बसत्ता [अन्धकरण], शा. अ. अन्धा कर देना या बना देना, ला. अन्दुबन्धनादीहि मुच्चिंसु, जा. अट्ठ. 1.62; बन्धेय्युं वाति अ. संशयग्रस्त कर देना, अज्ञान में ला देना, प्रज्ञा का रज्जुबन्धनेन वा, अन्दुबन्धनेन वा सङ्घलिकबन्धनेन वा ... निरोध कर देना, यथाभूतदर्शन का निरोध - अन्धकरणो बन्धेय्यु, पारा. 53; अन्दुबन्धनेन बद्धस्स विस्सज्जनेन अचक्खुकरणो अआणकरणो पञआनिरोधिको विघातपक्खिको लभमानकहापणो बन्धनकहापणो, म. नि. टी. (मू.प.) अनिब्बानसंवत्तनिको, इतिवु. 60; अ. नि. 1(1).247; 1(2).251; भन्ते, अज्ज अम्हेहि पिण्डाय चरन्तेहि बन्धनागारे अन्धकरणोतिआदीसु यस्स रागो उप्पज्जति, तं बहू चोरा अन्दुबन्धनादीहि बद्धा महादुक्खं अनुभवन्ता दिट्ठा, यथाभूतदस्सननिवारणेन अन्धं करोतीति अन्धकरणो, अ. ध. प. अट्ठ. 2.310.
नि. अट्ठ. 2.194; - कारक त्रि., अंधा या अज्ञानी बना देने अन्धोलि स्त्री., बांस के दण्ड पर लटक रही पालकी - वाला - ते अन्धकारके कामे, बहुदुक्खे महाविसे, जा. अट्ठ.
अन्धोलिधवलच्छत्तचामराधीनि सो तदा, चू. वं. 88.88. 3.442; तत्थ अन्धकारके ति पाचक्खुविनासनतो अन्दोलिका स्त्री., पालकी - पाटङ्किन्ति अन्दोलिकायेतं अन्धभावकरे तदे. - कारी त्रि., [अन्धकारिन], अंधा बनाने अधिवचनं, सारत्थ. टी. 3.263.
वाला, अज्ञान से भर देने वाला - अन्धकाराति अन्ध' द्रष्टि के विनष्ट होने के अर्थ वाली एक धातु - अन्धकारगतसदिसी, जानितुकामे च अन्धकारिनी, लीन. अन्ध दिदुपसंहारे, सद्द, 2.548.
(दी.नि.टी.) 2.243; - चक्खु क त्रि., ब. स. [अन्धचक्षुष्क], अन्ध त्रि., Vअन्ध धातु से व्यु. [अन्ध], शा. अ. दोनों नेत्रों अंधी आंखों वाला, अन्धा - अन्धचक्खुकानं यक्खानं मेत्तानुभावेन की दृश्यशक्ति से रहित, अन्धा - अन्धोति अन्धेतीति अन्धो चक् लभापेसि, सा. वं. 69(ना.); - ज्जन पु., कर्म. स., द्विन्न चक्खूनं एकस्स वा वसेन नट्ठनयनो, सद्द. 2.548; पुथुज्जन के मि. सा. पर जकार को द्वित्व [अन्धजन], अन्धो द्वयेन थ, अभि. प. 321; सब्बानिपि चे ओस्सजेय्य अंधे लोग, अज्ञानी लोग, अविद्या से ग्रस्त लोग - अन्धोव सिया, समविसमस्स अदस्सनतो, थेरगा. 321; अन्धज्जननानं हदयन्धकारं विद्धंसनं दीपमिमं जलन्तं, अभि. अन्धं पब्बाजेन्ति, महाव. 115; अन्धोति जच्चन्धो वुच्चति, अव. 66; - ज्जनपलोभिक त्रि., [अन्धजनप्रलोभक], महाव. अट्ठ. 296; ..., अन्धस्स सतो पुन दिब्बचक्खूनि अज्ञानी लोगों को प्रलोभित करने वाला या ललचाने वाला उप्पन्नाति, मि. प. 125; अन्धा मातापिता मह, ते भरामि - राजा आह ... छिन्निकाय पापिया भिन्नसीलाय ब्रहावने, जा. अट्ठ. 6.95; यञ्च अन्धे न पस्सामि, मओ हिरिअतिक्कन्तिकाय अन्धजनपलोभिकायाति, मि. प. 1283; हिस्सामि जीवितान्ति, तदे. ला. अ.क. मानसिक रूप में - तम नपुं., अन्ध' (ग) के अन्त. द्रष्ट.; - नख त्रि., ब. विक्षिप्त, अज्ञानी, मूर्ख, मोह से ग्रस्त, अविद्या से ग्रस्त, स. [अन्धनख], गन्दे या काले नखों वाला, अतीक्ष्ण नखों प्रज्ञाचक्षु से रहित - कामरागो पातुरह, अन्धोव सवती अहं, वाला - बलङ्कपादो अन्धनखो, अथो ओवद्धपिण्डिको, जा. थेरगा. 316; अन्धोव सवती अहन्ति तस्मिं कळेवरे नवहि अट्ठ. 7.319; अन्धनखोति पूतिनखो, जा. अट्ठ. 7.320; -
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