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अनावकूल/अनावकुल
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अनावरण अन्धो अनालोको, मि. प. 273; ख. पु., तत्पु. स., पटिसन्धिवसेन अनावत्तनधम्मो, दी. नि. अट्ट, 1.252; - अन्धकार, तमस् - अप्पदीपेति अनालोके, पाचि. 366. समाव त्रि., ब. स. [-स्वभाव], स्वभाव से ही वापस न अनावकूल/अनावकुल त्रि., अवकूल/अवकुल का निषे०, लौटने वाला- अनावत्तिधम्मन्ति अनावत्तनसभावं अनिबत्तारह ब. स., समतल तट वाला, निचली सतह वाले, तट से अ. नि. अट्ठ. 3.273. रहित - अनावकुला वेळुरियूपनीला, जा. अट्ठ. 5.162; अनावत्ति स्त्री., आवत्ति का निषे., तत्पु. स. केवल स. प. अनावकुलाति न अवकुला अखाणुमा उपरि के पू. प. में ही प्रयुक्त [अनावृत्ति], अप्रत्यावर्तन, वापस उक्कुलविकुलभावरहिता वा समसण्ठिता, तदे...
लौटकर न आना; - धम्म त्रि., अप्रत्यावर्तन स्वभाव वाला, अनावज्जन नपुं, आवज्जन का निषे.. तत्पु. स. [अनावर्जन], पुनः वापस न लौटने वाला - ओपपातिको होति, तत्थ असावधानी, भूल, प्रमाद - महाथेरो तस्मिं काले अनावज्जनेन परिनिब्बायी, अनावत्तिधम्मो तस्मा लोका, दी. नि. 1.139; तेसं अदस्सनं सन्धाय वदति, उदा. अट्ठ. 200.
अनावत्तिधम्मोति ततो ब्रह्मलोका पुन पटिसन्धिवसेन अनावट त्रि., आवट का निषे, तत्पु. स. [अनावृत], खुला अनावत्तनधम्मो, दी. नि. अट्ठ. 1.252; तत्थ परिनिब्बायिनो हुआ, अनाच्छादित, अनावृत, अनियन्त्रित, असंयमित - अनावत्तिधम्मा, म. नि. 3.125; अनावत्तिधम्मं मे चित्तं अपिनुस्स इत्थीसु आवट वा अस्स अनावट वाति, दी. नि. अरूपभवाया ति, अ. नि. 3(1).212. 1.84; यंनूनाहं इमासु पोक्खरणीसु एवरूपं मालं रोपापेय्यं ___ अनावयह त्रि., आवरह का निषे., तत्पु. स. [अनावाह्य], उप्पलं ... सब्बजनस अनावट, दी. नि. 2.134; अनावट विवाह संस्कार में जीवनसाथी के रूप अस्वीकार्य - अमनुस्सा भगवतो आणदस्सनं. स. नि. 1(1)63; - द्वार ब. स., [- अनावरहम्पि नं करेय्युं अविवरह, दी. नि. 3.154; अनावरहन्ति द्वार], सबों के लिए खुला द्वार - सद्धो दायको दानपति न आवाहयुत्तं अविवरहन्ति, दी. नि. अट्ठ. 3.136. अनावटद्वारो, दी. नि. 1.122; - द्वारता स्त्री॰, भाव., खुले अनावर त्रि., अवर का निषे०, ब. स. [अनवर], उत्तम, द्वार वाला होने की स्थिति - मेत्तेन मनोकम्मेन अद्वितीय, उत्कृष्ट, अनुपम - जेत्वान मच्चुनो सेन, विमोक्खेन अनावटद्वारताय आमिसानुप्पदानेन, दी. नि. 3.145; अनावरं इतिवु. 55; अओहि आवरितुं पटिसेधेतुं असक्कुणेय्यत्ता अपिहितद्वारताय, दी. नि. अट्ठ. 3.126.
च अनावरं, इतिवु. अट्ठ. 224. अनावट्टित त्रि., आवट्टित का निषे., तत्पु. स. [अनावर्तित], अनावरण त्रि, निषे०, ब. स. [अनावरण]. खुला हुआ, अप्रवर्तित, निष्क्रिय - किरियमनोधातया भवङ्गे अनावट्टितेयेव अनाच्छादित, बाधारहित, निर्विघ्न, व्यवधानरहित- बोज्झङ्गा
अतिक्कमनआरम्मणानं पमाणं नत्थि, ध. स. अट्ठ. 307. अनावरणा अनीवरणा चेतसो अनज्झारूहा, स. नि. अनावट्टी त्रि०, आवट्टी का निषे०, तत्पु. स. [अनावर्तिन्], 3(1).118; एवं वुट्ठहतीति आणं अनावरणं, नेत्ति. 81; - आभोगरहित, आसक्ति-रहित, अलिप्त, अनासक्त - सो नेव जाण नपुं.. [अनावरणज्ञान], सर्वव्यापी ज्ञान, अप्रतिरोधी ताव अनावट्टी कामेसु होति, म. नि. 1.126; अरियसावको ज्ञान, स्पष्ट ज्ञान-तत्थ आवरणं नत्थीति-अनावरणत्राणं उपरि झानानं ... अनधिगतत्ता नेव ताव कामेसु अनावट्टी पटि. म. 119; भगवतो आणं ... तत्थावरणाभावतो होति, अनावट्टिनो अनाभोगो न होति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) निस्सङ्गप्पवत्तिमुपादाय अनावरणञाणन्ति वुच्चति, उदा. अट्ठ. 1(1).374, द्रष्ट, विलो. आवट्टी..
115; अनावरणञाणस्स, सब्बञ्जतञाणस्स पटिवेधाय, जा. अनावट्टेन्त त्रि., अ + Vवट्ट, वर्त. कृ., आसक्ति से रहित अट्ठ. 1.87;-जाणदस्सन त्रि., ब. स. [अनावरणज्ञानदर्शन], होकर जीने वाला, विषय भोगों में न लिपटने वाला - अनन्तज्ञानदर्शन से सम्पन्न अर्थात् बुद्ध - अनावदृन्तस्स होति ... अनाभोगस्स होति, कथा. 286; तत्थ अनावरणञाणदस्सना हि बुद्धा भगवन्तो, नेत्ति. 17; - दस्सन अनावट्टेन्तस्साति दानचेतनाय पुरेचारिकेन आवज्जनेन भवङ्गं त्रि., ब. स. [अनावरणदर्शन], अपरिसीम दृष्टि वाला, अनावट्टेन्तस्स अपरिवठून्तस्स, कथा. अट्ठ. 194.
सुस्पष्ट दृष्टि से सम्पन्न या युक्त - महावीरो, अनावत्तन/अनावट्टन नपुं.. आवत्तन का निषे., तत्पु. स. अनावरणदस्सनो, अप. 2.114; - दस्सावी त्रि., [अनावर्तन], वापस न लौटना, अप्रत्यावर्तन, पीछे की [अनावरणदर्शिन], उपरिवत् - अनावरणदस्सावी, यदि बुद्धो स्थिति में पुनः न आना - धम्म त्रि., वापस न लौटने की भविस्सति, सु. नि. 1011; अज्झत्तञ्च पजानाति, बहिद्धा च प्रकृति वाला - अनावत्तिधम्मोति ततो ब्रह्मलोका पुन । विपस्सति, अनावरणदस्सावी, थेरगा. 472; - दस्सी त्रि.,
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