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अनाराधन
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अनालोक प्रव्रजित - कथञ्च, भिक्खवे, अतिथियपुब्बो अनाराधको अनालय' त्रि., आलय का निषे०, ब. स. [अनालय], शा. होति, महाव. 88.
अ. बेघर, बिना घर वाला, ला. अ. स्वच्छन्द, इच्छारहित, अनाराधन त्रि., आराधन का निषे, ब. स. [अनाराधन], असन्तोषप्रद, तृष्णारहित, अनासक्त (निर्वाण)- अनामयाति ... तं लभित्वा अशोभन, अरुचिकर, अनुपयुक्त, अनुचित - येन अनाराधकम्मेन अअत्थ अनालया हुत्वा वसामी ति, जा. अठ्ठ. 3.228; मोक्खो अज्ज मं रज्जम्हि त्वं उदस्सये जा. अट्ट. 5.24.
निरोधो निब्बानं - सन्तं सच्चमनालयं, अभि. प.6; ख. अनाराधनीय त्रि., आराधनीय का निषे., तत्पु. स. अमहत्वाकांक्षी, निरपेक्ष, निराकांक्ष - यथारह अदा चेव [अनाराधनीय], असफल, अनुमोदन न करने योग्य, समर्थन ठानन्तरं अनालयो, चू. वं. 42.42; 46.4. न करने योग्य, स्वीकार न करने योग्य - इदं ... अनालय' पु., आलय का निषे., तत्पु. स. [अनालय], सङ्घातनिकं अञतित्थियपुब्बस्स अनाराधनीयस्मि महाव. अनासक्ति, अनागारिकता, निर्वाण - यो तस्सा येव तण्हाय 89; मनुस्सभूतो वा एस बुद्धभूतस्स कायवचीद्वारे किं असेसविरागनिरोधो, चागो, पटिनिस्सग्गो, मुत्ति, अनालयो. अनाराधनीयं पस्सिस्सति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).275. महाव. 14; म. नि. 3.300; ओकं वुच्चति आलयो, अनोक अनारुळह त्रि., आ + रुह के भू. क. कृ. का निषे०, वुच्चति अनालयो, आलयतो निक्खमित्वा अनालयसवातं [अनारूढ], अप्रविष्ट, अगृहीत, नहीं किया गया, अप्राप्त -- निब्बानं पटिच्च, ध. प. अट्ठ. 1.338; - गामी त्रि., तिस्सो पन सङ्गीतियो अनारुळ्हं धातुकथा आरम्मणकथा [अनालयगामिन्], निर्वाणाभिमुख, निर्वाण तथा अनासक्ति ...., स. नि. अट्ट, 2.177; - पुब्ब त्रि.. ब. स. [अनारूढ़पूर्व], की अवस्था की ओर जाने वाला - अनालयञ्च वो भिक्खवे, पूर्वकाल में प्राप्त न किया हुआ अथवा पूर्वकाल में अगृहीत देसेस्सामि अनालयगामिञ्च मग्गं. स. नि. 2(2).343; - - नेक्खम्मपटिपदं अनारुळ्हपुब्बानं अनेककिच्चपसुतानं. चार/चारी [अनालयचारिन], अनासक्त-जीवन जीने वाला, विसुद्धि. 1.131.
अपरिग्रही - अनोकसारिन्ति अनालयचारिध. प. अट्ट, 2.383. अनारोचना स्त्री., आरोचना का निषे., तत्पु. स., सूचना का अनालस्स/अनालस्य नपुं., आलस्य का निषे., तत्पु. स. अभाव, सङ्घ द्वारा ज्ञप्ति का अतिक्रमण, अनुद्घोषणा, उद्घोषणा [अनालस्य], वीर्य, उद्योग, अध्यवसाय, पराक्रम - ... दस का परित्याग - सहवासो, विप्पवासो, अनारोचना-इमे धम्मा आहारा - उठानं अनालस्यं भोगानं आहारो, अ. नि. ... तयो पारिवासिकस्स भिक्खुनो रत्तिच्छेदाति, चूळव. 82; 3(2).113; अनालस्यछेककुसलभावसङ्घातं दक्खं नाम साधु, अनारोचनाति आगन्तुकादीनं अनारोचना, चूळव. अट्ठ. जा. अट्ठ. 3.411. 14.
अनालाप पु., आलाप का निषे.. तत्पु. स. [अनालाप]. अनालपनता स्त्री॰, भाव., आलपनता का निषे., तत्पु. स. असम्भाषण, सम्भाषण का अभाव, संवादविहीनता, बात-चीत [अनालपनता], संवादविहीनता, संवादाभाव, अनुकूल बनाने का अभाव - अनालापो तेसं अञम ही ति, मि. प. 57; की असमर्थता - इति हिदं मारस्स च अनालपनताय ब्रह्मनो । अनालापो, आनन्दाति, दी. नि. 2.106. च अभिनिमन्तनताय..., म. नि. 1.415; अनालपनतायाति अनालिन्दक/अनाळिन्दक त्रि., आलिन्दक का निषे., ब. अनुल्लपनताय, म. नि. अट्ठ.(मू.प.) 1(2).308.
स. [अनालिन्दक], दरवाजा के सामने वाली चौकोर जगह अनालम्ब त्रि., आलम्ब का निषे०, ब. स. [अनालम्ब]. से रहित, चबूतरा से रहित, ओसारा-रहित - तेन खो पन आधार-रहित, आलम्बन-रहित, बेसहारा - अप्पतिढे अनालम्बे, समयेन विहारा अनाळिन्दका होन्ति अप्पटिस्सरणा, चूळव. को गम्भीरे न सीदति, सु. नि. 175; तस्मिञ्च अप्पतिढे 279; ओसारकन्ति अनाळिन्दके विहारे वंसं दत्वा ततो दण्डके अनालम्बे गम्भीरे अण्णवे को न सीदतीति असेक्खभूमि ओसारेत्वा कतछदनपमुखं चूळव. अट्ठ. 62.. पुच्छति, सु. नि. अट्ठ. 1.183; अप्पतिढे अनालम्बे, गिरिदुग्गस्मि अनालुलित/अलुलित त्रि., आलुलित का निषे., तत्पु. स. पापतं, जा. अट्ठ. 5.65; अनालम्बेति आलम्बितब्बट्ठानरहिते, [अनालुलित], अक्षुब्ध, अकम्पित, नहीं हिलाया हुआ, इधरजा. अट्ठ. 5.68; अप्पतिद्वं अनालम्बं, दुत्तरं सीघवाहिनं, अप. उधर न कंपाया हुआ- अनेरितो अघट्टितो अचलितो अलुळितो 2.118; - चर त्रि., [अनालम्बचर], बिना आधार के विचरण ...., महानि. 260; अलुळितोति न कललीभूतो महानि, अट्ठ. 304. करने वाला, निरालम्ब विचरण - ये पन ते, महाराज, अनालोक क. त्रि., आलोक का निषे., ब. स. [अनालोक], भिक्खू इद्धिमन्तो ... अनालम्बचरा ..., मि. प. 311. प्रकाशरहित, दृष्टिरहित, आलोकरहित, दृष्टिविहीन - नाहं
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