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अण्ड
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अतक्क-गाह
अण्डकानि दिस्वा तानि सणिकं अपनेत्वा पुन अदासि, ध. मातकच्छितो अनिक्खन्तकालेयेव आभता आनीता, भताति प. अट्ठ. 1.37; 2. नपुं., वृक्ष में होनेवाली अपवृद्धि, वृक्ष पर वा पुट्ठाति अत्थो, जा. अट्ठ. 1.282; - जातक जातक उभरी हुई बंझा या गांठ - अण्डकाति यथा सदोसे रुक्खे संख्या 62 का शीर्षक, जा. अट्ठ. 1.279-284; - बुड्डि/वुद्धि अण्डकानि उट्ठहन्ति, एवं सदोसताय खुसनवम्भनादिवचनेहि स्त्री., [अण्डवृद्धि], अण्डकोषों का फूलना या बढ़ना, अण्डका जाता, ध. स. अट्ठ. 417; सदोसवणे रुक्खे वातण्डकरोग, जिसमें अण्डकोष फूल जाते हैं - अण्डवुद्धिरोगेपि निय्यासपिण्डियो, अहिच्छत्तकानि वा उहितानि अण्डकानी ति सत्थकम्मं न वट्टति, महाव. अट्ठ. 354; - सम्भव पु.. वदन्ति, फेग्गुरुक्खस्स पन कुथितस्स अण्डानि विय उहिता [अण्डसम्भव], अण्डे से उत्पत्ति या जन्म - अपण्डरो चुण्णपिण्डियो गण्ठियो वा अण्डकानी ति वेदितब्बा, ध, स. अण्डसम्भवो, सीवथिकाय निकेतचारिको, थेरगा. 599; - मू. टी. 177; - कपाल नपुं., [अण्डकपाल], अण्डे का हारक त्रि., [अण्डहारक], अण्डों की खोज में निकला हुआ खोल, अण्डविवर, अण्डे का आच्छादन - अण्डकपालानं मनुष्य, अण्डों को ढोनेवाला - सेय्यथापि, गहपति, पुरिसो तनुभावो विय बोधिसत्तभूतस्स भगवतो तिविधानुपस्सनासम्पादनेन अण्डहारको गन्त्वा उभतेहि अण्डेहि आगच्छेय्य, म. नि. 2.52. अविज्जण्डकोसस्स तनुभावो, पारा. अट्ठ. 1.102; - कोस अण्डुक नपुं, बालों से बना जूड़ा अथवा उसी तरह की कोई पु., [अण्डकोष], अण्डकोष, फोता - मुखतुण्डकेन वा गेंडुरी, नेठुआ, गेंडुआ, बालों की लट - केवल स. उ. प. अण्डकोसं पदालेत्वा सोत्थिना अभिनिभिज्जेय्य, पारा. 4; ये मे द्रष्ट, चेन., वाल. के अन्त.. खो ते, सारिपुत्त, सत्ता अण्डकोसं अभिनिभिज्ज जायन्ति, अण्डुपक नपुं.. कपड़े का बना गोलाकार घटाधार, गेंडुआ, अयं वुच्चति, सारिपुत्त, अण्डजा योनि, म. नि. 1.106; - नेठुआ, गेंडुरी - अण्डुपकं चुम्बुटकं, अभि. प. 458. च्छेद पु., बधिया बनाने के लिए पशुओं के अण्डकोषों का अण्ण' पु.. [अर्णस्], जल की बाढ़, जल-प्रवाह, जलौध - छेदन - अण्डच्छेदा निलछकाति भतिं गहेत्वा बलिवद्दानं अण्णो नीरं वनं वालं तोयमम्बू दकं च के अभि. प. 661; अण्डच्छेदका चेव, जा. अट्ठ. 4.329; - ज त्रि.. [अण्डज], मो. व्या. 499. क. चार प्रकार की योनियों में से एक योनि का नाम, अण्डे अण्ण नपुं.. [अन्न], अन्न, खाद्य, आहार, स. उ. प. में से उत्पन्न प्राणी- अण्डजा योनि, जलाबजा योनि, संसेदजा अपरण्ण, पुब्बण्ण के अन्त. द्रष्ट.. योनि, ओपपातिका योनि, म. नि. 1.106; ख. चार प्रकार की अण्णव पु., [अर्णव]. 1. शा. अ. समुद्र, सागर - अण्णवो नागयोनियों में से एक - अण्डजा नागा, जलाबुजा नागा, सागरो सिन्धु समुद्दो रतनाकरो, जलनिध्युदधी, अभि. प. संसेदजा नागा, ओपपातिका नागा - इमा खो, भिक्खवे, 659; कथंसु तरति ओघ, कथंसु तरति अण्णवं स. नि. चतस्सो नागयोनियों, स. नि. 2(1).238; ग. पु., पक्षी - 1(1).2483; 2. ला. अ. क. संसार - को सुध तरति ओघं, विहङ्गो विहगो पक्खि विहङ्गमखगाण्डजा, अभि. प. 624; कोध तरति अण्णवं सु. नि. 175; 185; ये तरन्ति अण्णवं अण्डजा मीनपक्खिसु, तदे. 1079; - मारी त्रि., [अण्डहारी], सरं महाव. 306; ख. सरोवर - किं अण्णवे कानि फलानि अपने अण्डकोष को कन्धे पर रखकर ढोनेवाला - अण्डभारि भुजे, जा. अट्ठ. 3.459; न अण्णवे सन्ति फलानि धङ्क, मंसं अह गामकूटकोति, स. नि. 1(2).235; - भारितवत्थु नपुं.. कुतो खादितुं चक्कवाके, जा. अट्ठ. 3.460. स. उ. प. में पारा. की एक कथा का शीर्षक - अण्डभारितवत्थुस्मि द्रष्ट., उदक-, खीर-., भव-., मह-., व्यसन-., इत्यादि; - गामकूटोति विनिच्छयामच्चो, पारा. अट्ठ. 2.90; - सुत्त कुच्छि स्त्री., समुद्र की तलहटी - भूरिदत्तनिवेसनं नपुं., स. नि. के एक सुत्त का शीर्षक, स. नि. अण्णवकुच्छि विय एकस अहोसि, जा. अट्ठ. 7.34; 1(2).234-235; - भूत त्रि., [अण्डभूत], क. अण्डे के छब्बण्णबुद्धरस्मियो विस्सज्जेन्तो अण्णवकुच्छि ओभासयमानो अन्तर्गत विद्यमान, चारों ओर ढका, परतन्त्र, अनुभव- युगन्धरमत्थके बालसूरियो विय आसनमज्झे निसीदि, जा. विहीन, बाह्यजगत के प्रभाव से विरहित - अविज्जागताय ।
भावज्जागताय अट्ठ.1.126. पजाय अण्डभूताय परियोनद्धाय अविज्जण्डकोसं पदालेत्वा, अण्ह पु., [अहन्], दिन, केवल, स. उ. प. में ही प्रयुक्त, पारा. 4; ख. कभी-कभी आतुर के बाद भी प्रयुक्त - आतुरो द्रष्ट. पुब्ब-., साय-, अपर. के अन्त.. हाय, गहपति, कायो अण्डभूतो परियोनद्धो, स. नि. 2(1).2; अतक्क-गाह पु., [अतर्कग्राह], बिना तर्क के ही किसी वाद अण्डभूताभता भरियाति अण्डं वुच्चति बीजं, बीजभूता या प्रतिज्ञा का ग्रहण, अतार्किक ग्रहण - अपण्णके चेव
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