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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२ : पद्मावती परिणामतः गुप्तों ने पद्मावती नगरी को ही उजाड़ डाला । बाणभट्ट ने इस घटना की ओर अपने ग्रन्थ 'हर्षचरित' में उल्लेख किया है । 'हर्षचरित' के षष्ठोच्छवास में उल्लेख है कि पद्मावती का नागसेन सारिका द्वारा भेद खोल दिये जाने पर नष्ट हुआ । समुद्रगुप्त ने अपनी विजयों के पश्चात साम्राज्य को संगठित करने में बड़ी कूटनीति से काम लिया । उसने अपने पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय का विवाह वीरसेन की पुत्री कुबेरनाग से कर लिया, क्योकि वह जानता था कि युद्ध में हरा देने मात्र से विद्रोह की ज्वाला शान्त होने वाली नहीं थी । इसलिए उसने विवाह का एक राजनैतिक अस्त्र के रूप में उपयोग किया । इस विवाह सम्बन्ध द्वारा वह नागों को ही नहीं अपितु नाग दौहित्र वाकाटकों को भी शान्त बनाये रखना चाहता था । कुछ समय तक यही स्थिति चलती रही, और जब यह देखा गया कि स्थिति काबू में आ चुकी है, तो वीरसेन को समाप्त कर दिया गया । समाप्त कर देने के लिए किसी-न-किसी बहाने की आवश्यकता तो थी ही । यह बहाना सारिका ही बन गयी । आगे चल कर एक विवाह सम्बन्ध और हुआ, जिसके आधार पर वाकाटक साम्राज्य का शेष तो समाप्त हो ही गया, किन्तु अल्प काल में ही वाकाटक साम्राज्य गुप्त साम्राज्य में तिरोहित हो गया । चन्द्रगुप्त द्वितीय और कुबेरनाग से उत्पन्न पुत्री प्रभावती गुप्ता का विवाह पृथ्वीसेन वाकाटक के पुत्र रुद्रसेन द्वितीय के साथ किया गया । रुद्रसेन द्वितीय के पश्चात शासन की बागडोर कुबेरनाग-पुत्री प्रभावती गुप्ता सम्हाली क्योंकि राजकुमार अवयस्क थे । गुप्तों के आविर्भाव के साथ-ही-साथ पद्मावती के वैभव के दिन समाप्त होने लगे थे । समृद्धि और उत्कर्ष के दिन एक बार समाप्त होने के पश्चात फिर वापस नहीं आये । गुप्तवंश के शासकों ने पद्मावती के शासकों के आदर्श एवं रुचियों पर कोई ध्यान नहीं दिया, और पद्मावती की शोभा सदा के लिए विलीन हो गयी । बताया जाता है कि पद्मावती के शासन की बागडोर कुछ समय के लिए परमार शासक पुन्नपाल ने भी सम्हाली थी । उसके पश्चात नरवर का कछवाहा शासक भी इस पर अधिकार जमाये रहा । यह शासक दिल्ली का करद शासक था । पवाया में जो किला है, उसका संस्थापक तो पुण्यपाल अथवा पुन्नपाल को ही समझा जाता है, किन्तु अब जिस रूप में वर्तमान है, उसे नरवर के कछवाहा शासक ने बनवाया था । यह किला जिन ईंटों से बना है, वे ईंटें तो प्राचीन हैं, पर कहीं से खोदी हुई हैं । पद्मावती के अपकर्ष के दिनों की कहानी बड़ी अस्पष्ट प्रतीत होती है । ऐसे संकेत अवश्य मिलते हैं कि मध्यकाल में पवाया पर मुसलमानों का आधिपत्य हो गया था । पवाया से एक मील के दायरे में ही पाँच मकबरे और एक मस्जिद हैं । अन्य अवशेष तो हैं ही, जो यह सिद्ध करते हैं, कि यह मुसलमानों के अधीन रही होगी । गुम्बदहीन ऐसे कमरे मिले हैं, जिन पर स्थापत्य कला की कारीगरी नहीं दर्शायी गयी है । यह मुगलकाल के आरम्भ काल की स्थापत्य कला है । इस प्रकार पद्मावती का इतिहास अधूरा अवश्य है, किन्तु यह अधूरा इतिहास कई पूरे इतिहासों से अधिक महत्वपूर्ण है । अब तक जिसे अंधकार युग कहा जाता था, वह For Private and Personal Use Only
SR No.020523
Book TitlePadmavati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Sharma
PublisherMadhyapradesh Hingi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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