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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 118 मूर्तिपूजा का विरोध करते हैं, श्रमणवर्ग की शिथिलता के कट्टरविरोधी हैं, चारित्र्य की कठोर साधना को संयम मानते हैं और इन्होंने यथास्थिति को तोड़कर नया पथ चलाया है। ये आरोपही लोकाशाह की उपलब्धियाँ है। ___ लोकाशाह की चलाई हुई संयमक्रांति की ज्योति 100 वर्षों तक दीपशिखा की तरह जलती रही। 'तपागच्छ पट्टावली' के अनुसार लोकाशाह का प्रथम शिष्य भाणा नामक व्यक्ति हुआ। बहुत से लोंकागच्छाधिपतियों की परम्परा- केशव जी, रतन जी, जगमलजी, रायपाल जी, धन्न जी, मोहन जी, गोरधन जी और सोनजी तक चलती रही है। लोकागच्छ के 100 वर्ष के भीतर तीन सम्प्रदाय बने- 1. गुजराती लोंकागच्छ 2. नागौरी लोंकागच्छ और 3. उत्तरार्द्ध लोंकागच्छ। लोकाशाह के 100 वर्ष के पश्चात् जब पुन: शिथिलता का दौर चला, तब सोलहवीं शताब्दी और सत्रहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में लोकाशाह की अमर क्रांति को पांच महापुरुषों ने पुनरुज्जीवित किया 1. जीवराज जी महाराज 2. धर्मसिंह जी महाराज 3. लबखी ऋषिजी महाराज 4. हरजी ऋषिजी महाराज 5. धर्मदास जी महाराज। स्थानकवासी परम्परा पूज्य श्री जीवराजजी, लवजी ऋषि जी, धर्मसिंहजी, धर्मदास जी और हाजीऋषि जी महाराज की परम्पराओं में सर्वप्रथम जीवराज जी हुए । जीवराज जी महाराज का जन्म संवत् 1581 में हुआ, जबकि लवजी ऋषि ने संवत् 1692 अथवा 1705 में यति दीक्षा त्यागकर साधु दीक्षा ली। श्री आनन्दऋषि जी महाराज के सूचनानुसार लवजी ऋषि ने 1692 में यति दीक्षा और 1694 संवत् में साधु दीक्षा ली। ये पांचों महापुरुष त्याग और वैराग्य की विभूति थे। (1) जीवराज जी महाराज ___ इनका जन्म सूरत में वि.स. 1500 में श्रावण शुक्ल 14 को हुआ। ये जन्मना वैरागी थे। आपसं. 1575 में जगाजी यति के पास दीक्षित हुए। ये विश्व के वैभव, माँ के ममत्व और पत्नी के प्यार को ठुकराकर साधु हुए। इन्होंने संवत् 1566 में पांच साधुओं के साथ आर्हती दीक्षा ग्रहण की। जीवराज जी महाराज को स्थानकवासी परम्परा का संस्थापक कह सकते हैं। ये स्थानकवासी सम्प्रदाय की व्यवस्थित क्रांति के मूल प्रणेताओं में प्रथम पद के अधिकारी बने। 1. मुनि सुशील कुमार, जैनधर्म का इतिहास, पृ330 2. वही, पृ352 For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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