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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir दशा श्रुतस्कन्धस्य विचारा: गच्छे पडिबद्धाण अहलंदीण तु अह पुण विसेसो । उगहो जो तेसि तू सो आयरियाण आभयइ ॥ २५५९ ॥ एगवसहीए पणगं छवीही ओ व गाम कुवंति । दिवसे दिवसे अण्ण अडंति वीहीय नियमेण ।। २५६० ॥ परिहाविलुद्धीण जहेव जिणकप्पियाण नवरतु । आयंबिल तु भत्त गेण्हंती वासकप्पं च ॥ २५६९ ॥ चूणिर्यथा-परिहारियाण वि जहा जिणाण नवरं आयबिलेण मासी सो सञ्चो विदाइ ति । जिणप्पि-अहालंदी-परिहारविसुद्धियाण जिणकप्पो । थेराणं अजाण य बोधव्या थेरकप्पो उ ॥ २५६४ ॥ ___इति अहालंदगादिविचार: ॥ इति पञ्चकल्पविचारा: समाप्ता : ॥ दश श्रुतस्कन्धविचारा यथाअत्थेण वा विचित्तं सुयं, अहवा सप्तमयपरसमयेहि उस्तगाववाएहि वा, उक्तं च - चित्रं बर्थयुक्तम्' इति स्तुतियुगलसूचा चतुर्थदशायाम् । 'पक्खियपोसहिएसु' इति । चूर्णिणयथा-पक्खियं पक्खियमेव, पक्खिए पोसही पक्खियपोसही चाउसिमदुमीतु य । इति पाक्षिकविचारः पञ्चमदशायाम् । उहिट्टा-अमावासा पश्चमदशायाम् । तत्थ णं जे से पावाए मज्झिमाए हस्थिपालरण्णो रज्जुयसभाए मच्छिमं अंतरावास वासावास उवागए, तस्सणं अंतरावासस्स जे से वासाणं चउत्थे मासे सत्तमे पक्खे कत्तियब हुले, तस्स ण कत्तियबहुलस्स पण्णरसी पक्खेण जा सा चरिमा रयणी, तं रयणि For Private And Personal Use Only
SR No.020506
Book TitleNishesh Siddhant Vichar Paryay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year1973
Total Pages181
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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