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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाडीदर्पणः । तहां सौदा अर्थात् वातमें पृथ्वीतत्व अधिकहै अतएव वातस्वभावसे ही रूक्ष और शीतलहै पित्तमें अग्नितत्व विशेषहै अतएव सफरा पित्त रूक्ष और उष्ण है वल्गम (कफ) में जलतत्त्व अधिक होनेसे स्निग्ध शीतल गुणवालाहै खून ( रुधिर ) में वायुतत्व अधिक होनसैं स्निग्ध और उप्णहै अतएव अन्य दोषोंकी अपेक्षा यह रुधिर श्रेष्ठ है। इस प्रकार दोषोंके गुणोंका विचारकर उक्त नाडीके लक्षणोंसें मिलाकर द्वंद्वज गुण अपनी बुद्धिसै कल्पना करै । जैसे जो नाडी दीर्घ और स्थलहो उसको गरमतर गुणविशिष्ट होनेसे रुधिरकी जाननी और जो नाडी दीर्घ तथा पतली होवे उसमें गरम और खुष्क गुण होनेसैं पित्तकी जाननी जो हस्व और मोटीहो वुह शरद और तर गुणवाली होनेसे कफकी जाननी और जो नाडी ह्रस्व और पतली होवे उसमें शरद और खुष्क गुणहोनेसैं वातकी नाडी जाननी चाहिये । इम्वसातके भेद । तवील (दीर्घाकार ) | अरीज ( स्थूलाकार) । उमक (बहिर्गत्याकार ) मुअदिल कसीर । तवील | अरीज ज्ययकवा मुअदिल सुशरिफ मुनखफिज मुअदिल समान ३ ह्रस्व २ १ दीर्घ स्थूल (कृष) समान | बहिर्गत अंतर्गत समान | यदि नाडी चार अंगुलसें कुछभीन्यूनाधिक नहो किंतु समहो तो उसप्राणीके शरदी गरमी समान जाननी। और चार अंगुलसैं न्यून होवे तो वो शरदीके लक्षण वाली जाननी अर्थात् ऐसे पुरुषके शरदी जानना ।। al जो नाडी पहुचेसैं भुजाके प्रति चार अंगुलसैं अधिक लंबी प्रतीतहो तो वो गरमीके लक्षणवाली जाननी । यदि नाडी तर्जनी उंगलीसे लेकर कनिष्ठिका पर्यंत स्थूल प्रतीत होवे तो वो तर अर्थात् जैसै रुधिर और करें । मा जो नाडी पतली प्रतीतहोवे उस्को रूक्ष अर्थात खुष्क क-IA बहतेहै । जैसे पित्त और वातकोपमे होतीहै ।। | जो नाडी न स्थूलहो न कृशहोवे किंतु समानहो उसमे तHT जो नाडी अत्यंत उछलकर वलपूर्वक उंगलियोंको स्पर्श करे। उसमें गरमीकी आधिक्यता प्रतीत होताहै। | जो नाडी हृदसैं कम्उंची उठे अर्थात् धारे उंगलियों को स्प करे गरमी उसमें न्यूनता प्रतीत होतीहै । किंतु शरदीको | जो नाडी न बहुत उभरी हुईहो न बहुत बिलकुल दवी हुई हो किंतु समानहो इसमें गरमी होती है।। ग ठीकठीक होताहै। द्योतन करतीहै। a अब जानना गहिये कि हिकमतमें दोष चारप्रकारके कहे है यथा । For Private and Personal Use Only
SR No.020491
Book TitleNadi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Dattaram Mathur
PublisherGangavishnu Krushnadas
Publication Year1867
Total Pages108
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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