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________________ For Private and Personal Use Only जो नाडी उंगलियों के मांसमें जोर से धक्कादेवेकर ऊंची उठावे तो हृदयकी प्रबलता जाने | शीघ्रचारिणी मंदचारी और यदि नाडी उंगलियोंको स्पर्शकर दवजावे तो हृदयकी दुर्बलता जाननी । और जो नाडी न बहुत जोर लगे न अत्यंत धीरे लगे वो दिलकी समताको प्रगट करती है। समता जो नाडी शीघ्र आवा गमनकरे वो देहमें गरमीकी विशेषता द्योतन करती है । और धीरे धीरे आवा गमनकरे वो देहमें सरदीकी आधिक्यता द्योतन करती है । समता मंदचारी वती शीघ्रचारी मोअदिल गरम सखक्त जो नाडी मध्यम चालसैं आवा गमन करे वो सरदी गरमीकी समानता प्रगट करती है । जो नाडी दावनेसै सहज दवजावे उसको तरस्निग्ध कहते है, इसे फारसी में लीन कहते है । और जो दवाने न दवे वह खुष्क जाननी उसको फारसी में सत्व कहते है । जिसमें मध्यम गुणहो अर्थात् न बहुत कठोर न बहुत नम्र वो मोतदिल जाननी । जो नाडी मोटी और शीघ्र चलतीहो वह रुधिर और मवादसे भरी हुई जानना अथवा जीवसे परिपूर्ण जानना । मुमतिला मोअहिल खाली माद्दिल गरम उष्ण शीत सरद मोअद्दिल सम उस्तवा पूर्वसदृश और जो नाडी खाली होती है वो मंद और पतली होती है उसमें थोडा रुधिर और मवाद जानना | और जब नाडी न भरीहो न खालीहो वो समान कहलाती है । इसमें मवाद ठीक होता है.. जिस समय नाडीका स्पर्श गरम प्रतीतहों तव रुधिर में ज्वर वा गरमी जानना । और जिस समय स्पर्शमें शीतलता प्रतीतहो तव रुधिर में सरदीकी आधिक्यता जाने । जिस समय नाडी में शीत उष्णता समान प्रतीतहो उसको सम कहते है । जो नाडी कम्से कम् ३१ वार टंकोर देके ठेहर जावे वो साध्य है । जो ३५ वार टंकोर देनेमें कई वार टूटजावे अर्थात् ठहर कर चले वो असाध्य है । जो बहुतवार न टूटे किन्तु अल्पवार टूटकर फिर शीघ्र चलने लगे उसको थाप्य जानना । जो नाडी उंगलियोंको स्पर्शकरके शीघ्र नीचे चलीजावे वो निर्बल जाननी । जो नाडी उंगलियोंको कुछकालतक स्पर्शकरे उसको बलवान् कहते है । और जो समान रीतिसें उंगलियों का स्पर्शकरे उसको समान स्थिति वाली जाननी । सबल दुर्बल मोतदिल सरी मुटु कठिण सम रुधिरपूर्ण स्वल्परुधिर समता इख्तिलाप विपरीत मोअदिल समता मुतबातर अत्यंत मुतफावत धैर्य मोद्दिल समता लाबल (नाडीका ब- नाडीका विलंब होना २ आकृति प्रमाण स्पर्श साध्यासाध्य રૂ 8 6) अन्यचक्र यूनानीमतानुसारनाडीपरीक्षा Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.020491
Book TitleNadi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Dattaram Mathur
PublisherGangavishnu Krushnadas
Publication Year1867
Total Pages108
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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