SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०) नाडीदर्पणः । चलतीहै । यह द्वितीयादिक्षणोंमें जाननी कोई कहताहै कि आदिमें वातकी बीचमें पित्तकी और अंतमें कफकी नाडी चलती है यह बात सर्वथा निर्मूल है क्योंकि स्थानका नियम किसी जगे नहीं करा, विशेष आगे कहते है यथा ॥ २६ ॥ उक्तश्लोकका विरोधीवचन । आदौच वहते पित्तं मध्ये श्लेष्मा तथैव च। अन्ते प्रभचनो ज्ञेयः सर्वशास्त्रविशारदैः ॥२७॥ अर्थ-आदिमें पित्तकी मध्यमें कफकी और अंत्यमे वातकी नाडी सर्वशास्त्रज्ञाता वैद्योंकरके जाननी ॥ २७ ॥ नाडीचक्रमिदम् वात पित्त । __ कफ नाडीके नाम श्याम हरित पीत लाल नील सपेद नाडीके वर्ण ब्रह्मा शीव विष्णु नाडीके देवता न गरम न शीत ल किंतु मध्यम गरम शीतलनाडीका स्पर्श विषम दीर्घ हस्व नाडीमाप गंधहीन तीव्रगंध मध्यमगंध नाडीका गंध तिर्यग्गमन ऊर्ध्वगमन अधोगमन नाडीका गमन हलकी हलकी भारी नाडीका गुरुता और लघुता नाडीके बलवा नहोनेका समय रात्रिदिवाबली दिवाबली । रात्रिबली - For Private and Personal Use Only
SR No.020491
Book TitleNadi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Dattaram Mathur
PublisherGangavishnu Krushnadas
Publication Year1867
Total Pages108
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy