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आयुर्वेदोक्तनाडीपरीक्षा अर्थ-स्वस्थ अवस्थाकी नाडी कैंचुआ और सर्पके समान टेढीगतिसैं और पुष्ट तथा जडता रहित होती है यह नैरोग्य पुरुषकी नाडीके लक्षणहै तथा सुखी पुरुषकी नाडी स्थिर और बलवान् होतीहै ॥ २१ ॥
नाडीके देवता । वातनाडी भवेत् ब्रह्मा पित्तनाडी च शंकरः।
श्लेष्मनाडी भवेद्विष्णुस्त्रिदेवा नाडीदेवताः ॥२२॥ अर्थ-वातनाडीका ब्रह्मा, पित्तनाडीका शंकर, और कफनाडीका पति विष्णुहै।२२।
नाडीन्के वर्ण । वातनाडी भवेन्नीला पित्तनाडी तु पाण्डुरा।
श्वेता तु कफनाडी स्यादेवं वर्णानि संवदेत् ॥२३॥ __ अर्थ-वातकी नाडीका वर्ण नीलहै, पित्तकी नाडीका पीला, कफनाडीका श्वेत, इसमकार नाडीके वर्ण कहने चाहिये ॥ २३ ॥
नाडीका स्पर्श । पित्तनाडी भवेदुष्णा कफनाडी तु शीतला ।
वातनाडी भवेन्मध्या एवं स्पर्शविनिर्णयः ॥२४॥ अर्थ-पित्तकी नाडी स्पर्शकरनेसे गरम प्रतीत होतीहै, कफकी नाडी शीतल, और यातकी नाडीका स्पर्श मध्यम होताहै इसप्रकार नाडीका स्पर्श जानना ॥ २४ ॥
कालपरत्व नाडीकी गति । प्रातः स्निग्धमयी नाडी मध्याह्ने चोष्णतान्विता।
सायाह्ने धावमाना च रांची वेगविवर्जिता ॥२५॥ अर्थ-स्वभावसँही नाडी प्रातःकाल स्निग्ध, मध्यान्हमें उष्ण, और सायंकालमें वेगवती, तथा रात्रि वेगवर्जित होती है ॥ २५ ॥
अथ वातादिस्वभावक्रम । आदौ च वहते वातो मध्ये पित्तं तथैव च ।
अन्ते च वहते श्लेष्मा नाडिकात्रयलक्षणम् ॥२६॥ अर्थ-अब वातादिकका स्वभाव क्रम कहतेहै, जिससमय वैद्य कोहनीको पकडताहैं । उसके द्वितीयक्षणमें प्रथम वातकी नाडी फिर मध्यमें पित्तकी और अंतमें कफकी नार्ड १ चिराद्रोगविवर्जितेति पाठान्तरम् ।
जवत वा
नाटिका समय
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