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जीवनी खंड
परंतु कुछ कम मात्रा में | 'भक्तमाला' में मीराँ की विवाह के समय की अवस्था १२ वर्ष लिखी है और अनाथनाथ वसु ने ११ वर्ष स्थिर की है। सम्भवतः इसी के आधार पर मेकालिफ ने मीरों की जन्म-तिथि १५६१ स्थिर की है जो सं० १५५५ अथवा १५५७ की अपेक्षा सम्भावना के अधिक निकट है। तनसुखराम मनसुखराम त्रिवेदी ने 'वृहत् काव्य दोहन' भाग ७ की भूमिका में मीराँ की जन्म-तिथि सं०१५५० और १५६० के बीच मानी है
और कवर कृष्ण, विष्णुकमारी 'मंजु' और डा० धीरेन्द्र वर्मा मीरा का जन्म सं. १५६० में मानते हैं। सभी बातों पर सम्यक विचार करने पर मीरों की जन्म-तिथि सं० १५५६-६० के आसपास ठीक जान पड़ती है।
मीरों के विवाह की तिथि सं० १५७३ निश्चित-सी है, केवल अनाथनाथ वसु सं० १५६७ में मीरों का विवाह मानते हैं । उनके विधवा होने की तिथि अभी तक निश्चित नहीं हो सकी है। मुं० देवीप्रसाद कुवर भोजराज की मृत्यु सं० १५७३ और १५८३ के बीच किसी समय मानते हैं और गौरीशंकर श्रोमा सं० १५७५ और १५८० के बीच किसी समय । मेवाड़ के ऐतिहासिक विभाग में इस सम्बंध में कोई सूचना नहीं मिलती । सम्भवतः यह दुर्घटना सं० १५८० के आसपास किसी समय हुई थी। ____ मीरों के मेवाड़-त्याग की तिथि सं० १५६० के अासपास है । सं०१५६१ में चित्तौर में जो शाका हुअा था उसमें १३००० महिलाओं ने जौहर किया था। उस समय मीराँ चित्तौर में होती तो उन्हें भी जौहर अवश्य करना पड़ता, क्योंकि एक तो वे विधवा थीं, दूसरे राणा तथा अन्य कटुम्बी उनकी मृत्यु चाहते भी थे । अतएव निश्चित रूप से मीराँ सं० १५६१ से पहले ही मेवाड़ छोड़ मेड़ता जा चुकी थीं, जहाँ उनके चाचा बीरमदेव और भाई जयमल उनका बहुत आदर करते थे। परंतु मेड़ता में भी मीराँ अधिक दिन न रह सकीं। सं० १५६५ में जोधपुर के राव मालदेव ने बीरमदेव से मेड़ता छीन लिया और वे भाग कर अजमेर चले गए । मीराँ को उस समय विवश होकर मेड़ता भी छोड़ना पड़ा और तब वे सम्भवतः वृंदावन की ओर तीर्थयात्रा के लिए चल पड़ी । अस्तु, सं० १५६५-६६ में मीराँ वृंदावन आई और
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