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मीराबाई है, अतः मीरों का जन्म सं० १५५०-५५ के बीच किसी समय हा होगा। राजस्थान के अन्य इतिहासकार हरविलास सारदा और गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने एक मत से मीराँ की जन्म-तिथि सं०१५५५ के आसपास निश्चित की है और डा० रामकुमार वर्मा तथा परशुराम चतुर्वेदी ने भी इसी तिथि को स्वीकार किया है। परन्तु इस तिथि को स्वीकार करने में एक अापत्ति यह है कि विवाह के समय मीराँ की अवस्था १८ वर्ष की आती है जो देश-काल को देखते बहुत अधिक जान पड़ती है। मुसलमानों के अत्याचार के कारण ही मध्य युग में बाल-विवाह की प्रथा चल पड़ी थी और कहीं-कहीं तो अपनी लज्जा बचाने के लिए बालिका-बध की प्रथा भी प्रचलित हो गई थी। मीरा के जन्म के कुछ ही दिनों पहले सं० १५४८ में गणगौर के मेले से १४० कुमारी राठौरकत्याओं का हरण हुआ था जिनकी रक्षा के लिए जोधपुर के महाराव सातलदेव तथा मीराबाई के पितामह रावदूदा ने मुसलमानों से घोर युद्ध किया था। सातल देव उसी युद्ध के घावों से स्वर्गगामी हुए थे, परंतु मरने के पहले उन्होंने सभी कुमारियों को मुक्त करा लिया था। ऐसे वातावरण में यह कैसे सम्भव था कि राव दूदा और बीरमदेव १८ वर्ष की अवस्था तक अपनी कन्या को कुमारी ही रखते। फिर सं० १५५५ मेंमीरों का जन्म मानने पर उनके पति कुँवर भोजराज की जन्म-तिथि सं०१५५३ के आसपास अथवा कुछ पहले ही माननी होगी। इस प्रकार महाराणा सांगा, जिनका जन्म सं०१५३६ (१२ अप्रैल सन् १४८२ ई०) में हुअा था, १४ वर्ष की अवस्था में ही एक संतान के पिता बन जाते हैं जो सम्भावना से दूर जान पड़ता है। फिर जब पुरुष होकर भी महाराणा सांगा का विवाह १४ वर्ष से भी कम अवस्था में हो गया था, तब यह कैसे सम्भव हो सकता है कि बालिका होकर भी मीराँ १८ वर्ष तक अविवाहिता रहतीं। वे भी तो एक बड़े वंश की इकलौती बेटी थीं। अस्तु, सं० १५५५ के आसपास मीराँ का जन्म मानना संगत नही जान पड़ता।
कन्हैयालाल मुंशी और वियोगी हरि ने मीरों की जन्म-तिथि सं०१५५७ के आसपास मानी है, जिसके संबंध में भी वही आपत्ति खड़ी हो जाती है
१ Gujrat and its Literature 1935 A. D.
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