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तीसरा अध्याय मीराँबाई की जीवन-सम्बंधी तिथियाँ मीरों की जन्म-तिथि के सम्बध में विद्वानों में बड़ा मतभेद है । जो लोग मीराँ को राणा कुम्भा की रानी मानते थे अथवा भक्ति-भावना को पैतृक सम्पत्ति समझकर उन्हें प्रसिद्ध भक्त और योद्धा वीर जयमल मेड़तिया की कन्या मानते थे, उनके मतों तथा तिथियों पर विचार करना ही व्यर्थ है, क्योंकि 'चौरासी वैष्णवन की वार्ता' तथा आधुनिक खोज से यह निश्चित रूप से प्रमाणित हो चुका है कि मीरों का जन्म सं० १५५५ और १५६० के बीच किसी समय हुआ था। पता नहीं मिश्रबंधुओं ने किस प्रकार यह भूल की कि उन्होंने अपने 'विनोद' में मोरों की जन्म तिथि सं० १५७३ स्थिर की
और रामचंद्र शुक्ल ने भी न जाने कैसे इस तिथि का अनुमोदन किया। सं० १५७३ तो सर्वसम्मति से मीरों के विवाह की तिथि है। जिन कुँवर भोजराज से मीरों का विवाह होना कहा जाता है, उनकी मृत्यु सं० १५८० के अासपास अथवा कुछ पहले ही हो चुकी थी। अतः १५७३ वि० को मीरों की जन्म-तिथि मानना ठीक नहीं है।
यह सचमुच आश्चर्य की बात है कि मीराँबाई के प्रथम प्रामाणिक चरित्र-लेखक मंशी देवी प्रसाद ने कर्नल टाड और कार्तिकप्रसाद खत्री के मत का खंडन करते हुए भी मीराँ की जन्म-तिथि का निश्चित उल्लेख नहीं किया। फिर भी यह बात निश्चित-सी है कि वे मीरों की जन्म-तिथि सं०१५५०
और १५५५ के बीच में मानते थे । कर्नल टाड की 'गलती' बताते हुए वे लिखते हैं कि राणा कुम्भा मीराँबाई के पैदा होने से २५ या ३० वर्ष पहिले मर चुके थे,' और राणा कुम्भा की मृत्यु-तिथि उन्होंने सं० १५२५ मानी
१ मीराबाई का जीवन चरित्र १.० ३१ ।
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