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जीवनी खंड
मीरों जैसी माधुर्य भाव की भक्ति करने वाली को मीराँबाई अर्थात् 'भगवान् की पत्नी' नाम दिया जाना असम्भव नहीं है, परन्तु जो बात सम्भव नहीं जान पड़ती वह यह है कि मीराँ ने इस नाम को अंगीकार किया और केवल अंगीकार ही नहीं किया वरन् अपने पदों में मीराँ नाम की छाप भी लगाई। फिर एक
और भी प्रश्न खड़ा होता है कि मीराँ को यदि यह नाम किसी संत द्वारा दिया गया होगा तो पर्यास यश मिलने के पश्चात् ही दिया गया होगा, पहले नहीं; अतएव यह नाम मिलने से पहले मीराँ ने जो पद लिखे थे, जो रचनाएँ की थीं, उसमें किस नाम की छाप लगी थी और उन पदों का क्या हुआ ?
रही मीराँ नाम की असाधारणता-तो यह नाम साधारण हे अथवा आसाधारण इसका विचार इस दृष्टि से नहीं करना चाहिए कि भारतीय साहित्य में यह नाम और शब्द नहीं मिलता; भारतीय साहित्य में रैदास नानक
और पीपा श्रादि शब्द और नाम ही कहाँ मिलते हैं ? यह नाम तो असाधारण तभी कहा जा सकता है जब उस समय अथवा उससे पहले के राजपूत समाज में इस प्रकार का न मिले । यदि यह कहा जाय कि मीरौं शब्द का मूल संस्कृत नहीं फारसी हैं, तो राजपूतों के नाम सभी संस्कृत मूल के ही होते ये ऐसा कोई नियम नहीं है । राजपूतों के सैकड़ों नाम असाधारण हैं और उन सब नामों का सम्बंध संस्कृत मूल से जोड़ना असम्भव-सा है। उदाहरण के लिए नैणसी की ख्यात से कुछ नाम देखिए-भूणाग सी, कान्हरण देव, बाप्पा रावल, खीवाँ, कीता, अळू, चूडा, काधल, माँजा, कल्ला, शेखा, बल्लू, कम्मा, कचरा, डूंगर सिंह इत्यादि । राजपूतों में कितनी ही जातियाँ शक और सिथियन मूल की हैं और उनके नाम भी संस्कृत मूल के नहीं मिलते। रणथम्भौर के पराक्रमी राणा हमीर का नाम भी कहा जाता है कि फारसी 'अमीर' शब्द का रूपांतर है अस्तु, राजपूतों के नामों की असाधारणता देखते हुए 'मीरौं' नाम की असाधारणता बहुत कम हो जाती है ।
उस समय के राजपूत-समाज में मीराँ नाम असाधारण तो नहीं जान पड़ता। राजपूत स्त्रियों का नाम इतिहास-ग्रंथों तथा ख्यातों में बहुत कम मिलता है, इससे कहना कठिन ही है कि मीरा नाम साधारण या अथवा असा
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