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Achar
जीवनी खंड
निश्चित किया। कर्नल टाड ने इतनी असंगत बात लिखी थी कि उसका निराकरण बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था। चौरासी वैष्णवन की वार्ता से मीरों का समय निश्चित करना कुछ कठिन न था। परंतु जान पड़ता है कि लोगों ने इस ओर विशेष ध्यान हा नहीं दिया । फिर आगे चलकर मीराबाई के नाम से प्रसिद्ध कुम्भस्वामी के मन्दिर में स० १५०५ का एक प्रशस्ति मिलती है जिसके अनुसार यह निश्चिा हो जाता है कि यह मंदिर भी उन्हीं राणा कुम्भा का बनवाया हुआ है जिन्होंने कार्तिस्तम्भ और आदि बाराह का मंदिर बनवाया था । जान पड़ता है कि मासाई इसा मंदिर म पृजापाट और भजन किया करती थी, इसी कारण जनतामें वह माराबाई का मंदिर प्रसिद्ध होगया।
मीराँबाई के इतिहास की खोज करनेवालों में महामहोपाध्याय डा. गौरीशंकर हीराचंद अोमा का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। मीरों के श्वसुरकुल और पितृकुल का विस्त त और अत्यंत प्रामाणिक विवरण उन्होंने अपने 'उद-पुर राज्य का इतिहास' और 'जोधपुर का इतिहास में दिया है। 'उदयपुर राज्य का इतिहास' पृ० ३५८-५६ पर मासूबाई के सम्बंध में वे लिखते हैं :
"कुवर भोजराज और उसकी स्त्रा मारौं बाई-राणागा का ज्येष्ठ कुंवर भोजराज था,जिसका विवाह मेड़त के राव बारमदेव के छोटे भाई रत्नसिंह की पुत्री माराँबाई के स.थ स० १५७३(१५१६ ई.)मं हुआ था । परतु कुछ वर्षों
1. Col. Todd nas stated THAT Miran Bai to be the queen of Kumbha. This is an error. Kumbha was killed in S. 1524 (A.D. 1467), while miran's grandfather Duda, became Raja of Merta atter that year Miran's father Ratan Singh was killed in the battle of khanua, 59 years after Kumbha's death Miran Bai was married to prince Bhojraj in S 1573 (AD. 1516) Miran sai was born at 1555 (AD 1494) and died in S 1603 (AD 1546) at Dwarka (Kathi awar Jat which place she had been residing for several years..
(Maharana Sanga page 95.96 Ajmer 1918) २ कुम्भश्वामिन पालय व्यरचयधामका १: ।
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