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मीराबाई
बाद महाराणा की जीवित दशा में ही भोजराज का देहांत हो गया, जिससे उसका छाटा भाई रत्नसिंह युवराज हुया।" 1. XX . XX
XX "मीराँबाई मेड़ते के राठोड़ राव दूदा के चतुर्थ पुत्र रत्नसिंह की जिसको दूदा ने निर्वाह के लिए १२ गांव दे रक्खे थे, इकलौता पुत्री थी । उसका जन्म कड़की गाँव में विक्रमो सं० १५५५(१४६८ ई.)के श्रासपास होना माना जाता है। बाल्यावस्था में हो उसको माता का देहांत हो गया, जिससे राव दा ने उसे अग्ने पास बुलवा लिया और वहां उसका लालन-पालन हुअा। विक्रमी सं० १५७२ (१५१५ ई०) में राव दूदा के देहांत होने पर वीरमदेव मेड़ते का स्वामा हुश्रा । गद्दा पर बैठने के दूसरे साल उसने उसका विवाह महाराणा सांगा के कंवर भोजराज के साथ कर दिया। विवाह के कुछ वर्षों बाद युवराज भोजराज का देहांत हो गया। यह घटना किस संवत् में हुई यह निश्चित रूप से ज्ञात नहीं हुश्रा, तो भी सम्भव है कि यह विक्रमी स० १५७५ (१५८ ई०) ओर १५८० (१५२३ ई०) के बीच किसी समय हुई हो।"
मासूबाई के पितृकल के सम्बध में आज तक जितनी खोज हो सकी है उसके अनुसार वे राव दूदा को वंशज ठहरती हैं । जोधपुर के संस्थापक राव जोधा जी का छः रानियों में पाँचवीं सोणगिरी रानी चम्पा के दो पुत्र बरसिंह
और राव दूदा थे। राव दूदा बड़े ही पराक्रमी थे । छोटो अवस्था में ही उन्हों ने राठौरों के परम शत्रु मेवा संधल का वध किया था जिसका पराक्रम अजेय समझा जाता था। सं० १५१८ में अपने सहोदर बड़े भाई बरसिंह के साथ उन्होंने मेड़ता और उसके पास प.स के सैकड़ों गाँव विजय कर अपने पिता के राज्य में मिलाया। सं० १५४५ में मरते समय राव जोधा ने मेड़ता की जागार रानी चम्पा के दोनों पुत्र-वरसिंह और गव दूदा-को दिया फलतः सं० १५४५ में बरसिंह जोधावत ने मेड़ता राज्य की संस्थापना की। कहा जाता है कि बरसिंह और राव दूदा दोनों भाइयों में पटी नहीं और राव ददा अपने सौतेले भाई बीका जी के पास बीकानेर चले गए । बरसिंह बड़े ही लड़ाके थे और आस-पास के मुसलमानी रियासतों में वे प्रायः लूट-मार किया
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