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मीराँबाई 'राजरानी मीरौं' में मीरों को राणा कुम्भा की रानी के रूप में ही चित्रित किया है।
इस भ्रांति का निराकरण सबसे पहले मुं• देवीप्रसाद ने किया था जिन्होंने मारवाड़ और मेवाड़ में 'दरयाफ्त' कर माराँबाई का एक प्रामाणिक जीवनचरित लिखा। इसमें कितनी हो नई बातों का उल्लेख किया गया है जो प्रियादास की टीका और टाड के राजस्थान में नहीं थी। फिर महाराणा सांगा नामक इतिहास ग्रंथ के रचयिता हर विलास सारदा ने भी टाड के मत का खंडन किया और मीराँबाई को महाराणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र भोजराज की पत्नी
साधु पो ङ्गति पाई, जाकी पूरन कमाई । टेक साधु की सङ्गत सन्त के वचन अवधड़ रही वताई ।। धना, सेन, रैदास नाम नीसरी मीरा बाई ।
कहत कबीरा सुन मेरे मनवा ज्योत में ज्योत मिलाई । और भी-नारायण सु लग रहो भाई।
गनका गीध अजामिल तारचो और तारयो मीराबाई ।। कबीर की मृत्यु १५७९ सं० में हुई थी अतः मीरा की मृत्यु इनसे पहले ही हो जाना चाहिये अमारी का समय कार के साथ ही पड़ता है। गुजरात में ऐसी प्रसिद्धि है किमी नरसी मेहता की समकालीन थी । नरसी मेहता का जन्मकाल सं० १४७० के
आसपास माना जाता है, अस्तु मीरों का समय विक्रम की १५ वो और १६ वीं शताब्दी ठहरता है। परन्तु उपयुक्त दोनों पद कबीर की रचनाएँ नहीं है, उनके किसी भक्त की रचना जान पड़ती है। दूसरे मीरा नरसी की समकालीन नहीं थी उनसे लगभग सौ वर्ष पीछे हुई थीं।
। सो यह विलकुल गलत है क्योंकि राणा कु.भा. तो मीराबाई के पति कुवर गेजराज के परदादा थे और मीरांवाई के पैदा होने से २५ या 30 बरस पहिले मर चुके थे। मालूम नहीं कि यह भूल राजपूताने के ऐसे बड़े तवारीख लिखने वाले से क्यों कर से गई है ।...............मीराँबाई का नाम मेडतनी है और महाराणा कुंभा जी का इंतकाल सं० १५२५ में हुआ है उस वक्त तक मीराबाई के दादा दूदा जी को मेड़ता मिला ही नही था इसलिये मोबाई राणा कुम्भा की राणी नहीं हो सकी।"
[मोरांबाई का जीवन चरित्र प ० ३१-३२ !
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