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मीराबाई
मीरों के संबंध में और भी कितनी जनश्रुतियाँ प्रचलित है । ये सभी कथाएँ न जाने किन-किन प्रशस्त और संकीर्ण भावनाओं से प्रेरित होकर लिखी गई थीं कि इनमें सत्य और असत्य, देवत्व और मनुजत्व, कवित्व ओर
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face की परस्पर विरोधी भावनाओं का सम्मिश्रण मिलता है । एक ओर तो मीराँ भगवान् श्रीकृष्ण की अनन्य प्रेमिका, रास निपुणा ब्रज - गोपी की अवतार मानी जाती हैं, दूसरी ओर काशी नगर के चौक में संत रैदास को अपना गुरु बनाती हैं; एक ओर तो साक्षात् गरुड़ वाहनारूढ़ भगवान् श्रीकृष्ण ही उन्हें जगाने के लिए आते हैं, दूसरी ओर उन्हें एक साधारण-सा परामर्श लेने के लिए सहस्रों मील दूर काशी को पत्र वाहक दौड़ाना पड़ता है । अस्तु, सभी जनश्रुतियों पर सहसा विश्वास कर लेना बुद्धिमान व्यक्ति के लिए सम्भव नहीं है । उन्हें स्थान, काल, पात्र की कसौटी पर कसकर स्वीकार करना चाहिए ।
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आधुनिक खोज - मीराँबाई के जीवन चरित्र सम्बंधी सबसे उपयोगी सामग्री आधुनिक काल के खोजों में प्राप्त हुई है। मीराँबाई के पितृकुल, श्वसुरकुल तथा उनके जीवन चरित के सम्बंध में जनश्रुतियाँ बिल्कुल ही मौन थीं; आधुनिक खोज से इन पर पूर्ण प्रकाश पड़ा। राजस्थान के इतिहास के साथ ही साथ मीराँबाई का इतिहास भी आधुनिक युग की खोज है, जिसका प्रथम सम्बद्ध रूप कर्नल जेम्स टाड (Colonel James Todd ) ने अपने 'एनाल्स ऐन्ड ऐन्डीक्विटीज़ ॉ राजस्थान' ( Annals and Antiquities of Rajasthan ) में उपस्थित किया । इस पूर्व ग्रंथ में राजपूती वीरता और गौरव का सच्चा रूप तो अवश्य मिलता है, परंतु इसमें कुछ ऐतिहासिक भ्रांतियाँ भी मिलती हैं; मीराँबाई का इतिहास इसका एक उदाहरण है । मेवाड़ के पराक्रमी राणा कुम्भकर्ण (कुम्भा ) ने अपनी अनेक विजयों के उपलक्ष में एक जयस्तम्भ अथवा कीर्तिस्तम्भ बनवाया था । उसी के पास एक ही ऊँची कुर्सी पर आदि वाराह और कुम्भस्वामी के दो मंदिरपास ही पास
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