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मीराँबाई वृन्दाबन पाई जीव गुसाई जू सो मिल मिली,
तिया मुख देखिबो को पन ले छुटायो है। __ और नाभादास के छप्पय में भी इसका संकेत मिलता है जब कि वे कहते हैं :
भक्ति निसान बजाय के काहू ते नाहिंन लजी। और गौड़ीय वैष्णवों में भी इस जनश्रुति का प्रचार है; अंतर केवल इतना ही है कि वहां जीव गोस्वामी के स्थान पर उनके चाचा रूप गोस्वामी का नाम लिया जाता है। शिशिर कुमार घोष रचित 'लार्ड गौरांग और सैल्वेशन फार अॉल' ( Lord Gaurang or Salvation for All) के प्रथम भाग की भूमिका पृ० ४० पर लिखा है :
जब राजपूत राजकुमारी मीराबाई, जिन्होंने भगवान कृष्ण के प्रेम में सब कुछ त्याग दिया था, श्री गौरांग (चैतन्य महाप्रभु) के एक प्रमुख भक्त वृन्दाबन निवासी प्रख्यात रूप गोस्वामी के दर्शन के लिए गई तो एक श्रेष्ठमत संन्यासी होने के नाते रूप गोस्वामी ने उनसे मिलना इस कारण अस्वीकार कर दिया कि उन्हें किसी स्त्री का मुख देखने का अधिकार न या। वस्तुतः मीराबाई एक परम सुन्दरी युवती राजकुमारी थीं और मीरा की भक्ति भावना में उन्हें अधिक विश्वास न था । रूप गोस्वामी का संदेश सुनकर 'मीरा ने उत्तर दिया' 'तब क्या वे पुरुष हैं। यदि ऐसा है तो उन्हें बृन्दाबन में घुसने का कोई अधिकार नहीं। पुरुषों का यहाँ प्रवेश नहीं है । यदि बृन्दावन की अधिष्ठात्री देवी को उनकी यहां उपस्थिति की सूचना मिल
विवेकी विश महात्मा होते हुए भी अपने आपको यदि पुरुष मानते हो तो यो जो श्री अन्तःपुरी में आपने स्थान अधिकार किया है, इस निडर साहस की इस आश्चर्यमय धृष्टता की सूचना स्वामिनी श्री राधिका महारानी जी की सेवा में अभी अभी क्यों नहीं पहुँचाई जावे ? सो आप शीघ्रसर बताने की कृपा कीजिये कि सच ही आप अपने तई पुरुष मानते हैं ?" इस पत्रिका को पढ़कर गोस्वामी जी की समझ में आगया कि मौरां कोई सामान्य व्यक्ति नहीं हैं; वरन् द्वापर की गोपी की अवतार हैं । तत्काल ही जीव गुसाई नङ्गे पांव चलकर मीराबाई जी से आ मिले।
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