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जीवनी खंड
पाने का प्रसंग मिलता है। इन सब जनश्रुतियों में सत्य की मात्रा लेश भर भी नहीं है, केवल भक्तों के महत्व-प्रदर्शन के लिए ये गढ़ लिए गए हैं।
मारौंबाई और जीव गुसाई के संबंध में जो कथा प्रचलित है वह अत्यन्त महत्वपूस है क्योंकि उसमें मारों के गृह और रहस्यमय सिद्धान्त की सष्ट व्याख्या मिलती है । इस कथा के अनेक रूप प्रचलित है। परन्तु सबसे प्रचलित कथा यह है कि मीरों वन्दावन में भक्त शिरोमणि जीव गोस्वामी के दर्शन के लिए गई। गोस्वामी जा सच्चे साधु थे और स्त्रियों की छाया तक से भागते थे, इसलिए भीतर से ही कहला भेजा की हम स्त्रियो से नहीं मिलते। इस पर मासूबाई ने उत्तर दिया कि मैं तो समझती थी कि वृन्दावन में श्रीकृष्ण ही एक पुरुष है, परन्तु यहाँ आकर जान पड़ा कि उनका एक और प्रतिद्वंदी पैदा हो गया है। मारों का ऐसा माधुर्य-भाव संयुक्त प्रेमपूर्ण उत्तर सुनकर जीव गुमाई नंगे पैर बाहर निकल आए बार बड़े ही प्रेम से उनसे मिले। इस कथा का मा उल्लेख सबसे पहले प्रियादास के कवित्तों में मिलता है। यथा:
१ मी बावन बैगवन का वा (हाकोर संस्करण सं० १९६० छीन स्वामी की वार्ता प्रमंग ३। प०१९ । ' २ मु. देवीप्रसाद 'भोरवाई का जोपन चरित्र' पृ. २९ पर इम कथा को इस प्रकार लिखते हैं । ( मीरा), एक दफे मथुरा होकर वृन्दावन को गई थी हां एक ब्रह्मचारी बोला कि मैं की का मुंह नहीं देखता हूँ, मीराबाई ने कहा वाह महाराज अभी तक स्त्री पुरुष में ही उलझे हैं अर्थात् सा दृष्टि नहीं हुए हैं। (यह ब्रह्मचारी और कोई नहीं मार प्रसिद्ध जोव गोस्वामी है।)
श्री सीतारामशरण भगवान प्र-गद जी रूपकला अपने ग्रन्थ 'श्री मीगाई भी. में ५० ४३.४४ पर लिखते हैं के मो. बाई ने प्रसिद्ध महात्मा हा तथा सनातन गोस्वामी के दर्शन किए और जीव गोस्वामी के दर्शों की अभिलाषा प्रकट की। परंतु जब सुना कि वे स्त्रियों का मुख देखना ने दुर रहा उन्हें अपने आश्रम में घुसने तक नहीं देते, तव' उन्होंने एक पत्रिका लिख भेजी कि " श्री वृन्दावन तो श्री बिहारी जी का रङ्गमहल रहस्यकुञ्ज है, और वास्तव में यहाँ को सब की सब केवल स्त्रियां ही है। 'पुरुष' तो एक बजविहारी श्री कृष्णचन्द्र आनन्दकन्द महाराज मात्र ही है। आप विख्यात
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