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मीराँबाई
गरुड़ चढ़ि हरि अब पाए मीरा के पास । श्रानँद तूर बजाइ के पूरी मन की बास ॥
[राग कल्पद्रुम द्वितीय भाग पू. ० ६७१ ] 'माइलस्टोन्स इन गुजराती लिटरेचर' (Milestones in Gujarati Literature) के रचयिता कृष्णलाल मोहनलाल मबेरी ने गुजरात में प्रचलित जनश्रति के आधार पर लिखा है कि जब राणा ने देखा कि मीराँ पर विष का कुछ भी प्रभाव न पड़ा तब उन्होंने स्वयं तलवार से मीरों का अंत करना चाहा, परंतु उनके तलवार उठाते ही एक साथ चार-चार मीराबाई दिखाई पड़ी और वे निश्चय ही न कर सके कि वास्तविक मीरा कौन सी है। मेकालिफ़ (M.Macaulif) ने 'द लीजेंड प्राव मीराँबाई (The Lerend of Mira Bai) में लिखा है कि राणा ने मीराँ को तलवार के घाट उतारना चाहा, परंतु क्षत्रिय होकर अबला की हत्या करना महापातक समम कर मीराँ को तालाब में डूब मरने की याज्ञा दी । सवेदा बड़ों की याज्ञानुवर्तिनी मीराँ अपने गिरधर लाल का ध्यान करती हुई पुष्कर में कूद पड़ीं, परंतु वहाँ भी वे डूब न सकीं, एक दिव्य पुरुष ने उन्हें पुष्कर के किनारे लगा दिया और अाज्ञा दी कि वृंदावन जाकर भगवान कृष्ण का गुणगान करें। कुछ जनश्रतियों के अनसार वे दिव्य पुरुष स्वयं मीरों के गिरधर नागर थे इसी प्रकार गिरधर लाल की मूर्ति की प्राप्ति तथा मीराँ और गिरधर लाल के विवाह के सम्बंध में भी अलौकिक कथाएँ प्रचलित हैं। इन जनश्रुतियों के पीछे देवीकरण (Deification) की भावना काम करती दिखाई पड़ती है। ___ कवित्व और देवत्व के श्रारोप के अतिरिक्त कुछ ऐसी जनश्रुतियाँ भी प्रचलित हैं जिनमें लौकिक भावना प्रधान है । इन जनश्रुतियों में सत्य और असत्य का कुछ ऐसा सम्मिश्रण है कि उन पर सहसा विश्वास करना भी उचित नहीं है और असत्य कह कर उनकी उपेक्षा भी नहीं की जा सकती। अतः स्थान, काल और पात्र की संगति मिलाकर उनका पूर्ण विवेचन किए बिना कछ कहना ठीक नहीं है । मीरों के सम्बंध में ऐसी कितनी ही जनप्रतियों का प्रचार है जिनमें मुख्य चार जनश्रुतियों का यहाँ विवेचन किया जायगा।
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