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. जीवनी खंड
इतना ही नहीं इस बीसवीं शताब्दी के वैज्ञानिक युग में भी गुजरात के प्रसिद्ध विद्वान् और लेखक काका साहब कालेलकर ने मीराँबाई को राधा जी का अवतार माना है। 'जन्माष्टमी का उत्सव' नामक निबंध में वे लिखते हैं"गोपिकानों के प्रेम को मीराबाई ने स्पष्ट कर दिखाया है । जब-जब धर्म पर से लोगों की श्रद्धा हट जाती है, तब तब उसको फिर से स्थिर कर देने के लिए मुक्त पुरुष इस विश्व में अवतार धारण करते हैं, और अपने प्रत्यक्ष अनभव और जीवन के द्वारा लोगों में धर्म के प्रति श्रद्धा उत्पन्न करते हैं। इसी तरह जब लोगों को गोपियों की शुद्ध भक्ति के विषय में अश्रद्धा उत्पन्न हुई, तब गोपियों में से एक ने-शायद राधा जी ने-मीराँबाई का अवतार लेकर प्रेमधर्म की स्थापना की।" [जीवन साहित्य प्रथम भाग प्र० संस्करण सन् १९२७ जन्माष्टमी का उत्सव ५० ३८]
यदि कवि हृदय ने मीरों को अवतार निश्चित किया तो भक्तों ने उन पर देवत्व का अारोप किया और उनके सम्बंध में अलौकिक और अतिमानुषिक प्रसंगों का प्रचार किया । मीराँ के नाम से प्रसिद्ध पदों में पिटारे में भेजा हुआ साँप कभी शालिग्राम की मूर्ति बन जाता है, कभी चंदनहार बन कर महलों में उजाला करता है; सूल सेज मीराँ के लिए पुष्प शैया और विष का प्याला साकार अमृत बन जाता है । मुं० देवीप्रसाद ने लिखा है कि कोई लोग यह कहते हैं कि राणा ने मीरों के लिए जो विष का प्याला भेजा था उस विष का मीराँ पर कुछ असर न हुश्रा बल्कि द्वारिका जी में रणछोर जी के मुंह से भाग निकले थे। एक पद ऐसा भी मिलता है कि विष का प्याला पीकर मीराँ सो जाती हैं और उन्हें जगाने के लिए गरुड़ पर चढ़कर स्वयं उनके श्याम पाते हैं :
राणे जी विषरा प्याला मोकल्या दीजो मीरा रे हाथ । मैं तो चरणामृत कर पी गई अब थे जाणे म्हारा नाय ।। मीरा विष का प्याला पी गई, सोती खू टी तान ।
म्हाँरो दरद दिवाणा साँवरो म्हाँने दौड़ जगावे पान ।। १ मीराबाई का जीवन चरित्र प.० १४
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