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जीवनी खंड
सबसे पहले तानसेन को साथ लेकर मुगल-सम्राट् अकबर का मोस् के दर्शन के लिए मेवाड़-गमन की कथा पर विचार करना है। इस जनश्रुति का प्राचीनतम उल्लेख प्रियादास कृत 'भक्तमाल' की टीका में मिलता है: रूप की निकाई भूप अकबर भाई हिये
लिये संग तानसेन देखिबो को श्रायो है। निरखि निहाल भयो छबि गिरधारी लाल,
पद सुख जाल एक तब ही चढ़ायो है | बाद में रघुराजसिंह कृत 'भक्तमाला' में इसका बहुत अधिक विस्तार मिलता है जो सबका सब अलौकिक और असत्य है । मुसलमान इतिहासकारों के अनुसार अकबर सं० १६२४ में मेवाड़ पर चढाई करने के लिए ही पहले-पहल वहाँ गया था और सं० १६२० के लगभग सम्राट ने रामचंद्र बघेला से तानसेन को प्राप्त किया था। अतएव सं० १६२० से पहले अकबर का तानसेन के साथ मेवाड़ जाना असम्भव ही था । परंतु जहाँ तक खोज हुई है, उससे यह निश्चित है कि मीराँ इस समय से बहुत पहले ही,सम्भवतः अकबर के जन्म(सं०१५६६) से भी पहले मेवाड़ छोड़ चुकी थीं और उस समय द्वारका में निवास करती थीं। अस्तु, स्थान और काल को दृष्टि से यह जनश्रुति असंगत ठहरती है। कुँवर कृष्ण ने अपने निबंध' में यह अनुमान लगाया है कि सम्राट अकबर ने मेवाड़ में नहीं गुजरात (द्वारका ) में जाकर सं० १६२६ में मीराँ का दर्शन किया था, परन्तु यह जनश्रुति के विरुद्ध है और केवल अनुमान मात्र है। अकबर ने मीरों के दर्शन के लिए कभी मेवाड़-यात्रा नहीं की और न कभी उनके दर्शन ही किए । प्रियादास ने जो लिखा है वह सम्भवतः असत्य नहीं भी हो सकता, परन्तु इस जनश्रुति में सत्य की मात्रा लेश मात्र भी नहीं है । यदि प्रियादास के उपयक्त कवित्त का अर्थ यह है कि मीराँ की रूप की निकाई देखने के लिए तानसेन के साथ सम्राट अकबर मेवाड़ आया था, तो यह असत्य ही नहीं उपहासास्पद भी है क्योंकि अकबर जब पैदा हुया : १ परिषद् निबंधावली द्वितीय भाग (प्रकाशक हिन्दी परिषद् प्रयाग विश्वविद्यालय) प्रथम निबंध।
मी०३
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