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अालोचना खंड
१२७ 'साहिब' को नैनों में बसाना चाहती है जहाँ 'त्रिकुटी' झरोके से वे झाँकी लगाएँगी और 'सुन्न' महल में सुख की सेज बिछाएँगी । वे एक अद्भुत रहस्यमय भगवान है जिनका कोई रंग-रूप नहीं।
मीरों के गिरधर नागर का एक दूसरा स्वरूप योगी का है। उस योगी की खोज में मीरा ने भी योग ले लिया है। उसे न दिन में भूख लगती है न रात में नींद आती है; वह घर-घर अलख जगाती फिरती हैं । उस जोगी से प्रीति करने में दुःख-ही-दुःख है। फिर भी उससे प्रीति करनी ही पड़ती है क्योंकि वह अत्यन्त सुंदर है और बहुत ही मीठे शब्द बोलता है। वह
जिनके पिय परदेस बसत है लिखि-लिखि भेजै पाती। मेरे पिय मो माहिं बसत हैं, कहूँ न आती जाती॥ [ मीराबाई की शब्दावली पृ० १० ] अथवा
रमैया मैं तो थारे रंग राती॥ ओरा के पिया परदेस वसत हैं लिखि लिखि भेजें पाती। मेरा पिया मेरे हिरदै बसत हैं गूंज करूं दिन राती ॥ चूवा चोला पहिर सखीरी, मैं झुरमुट रमवा जाती। झुरमुट में मोहि मोहन मिलियाँ, खोल मिलू गल बाटी।
[ मीराँबाई की शब्दावली पृ० २०] १. नैनन बनज बसाऊँरी जो मैं साहिब पाऊँ। इन नैनन मेरा साहिब बसता डरतो पलक न लाऊँ रो। त्रिकुटी महल में बना है झरोखा नहाँ से झाँकी लगाऊँ री । सुन्न महल में सुरत जमाऊँ, सुख की सेज बिछाऊँ री। मीरा के प्रभु गिरधर नागर बार बार बलि जाऊँ री। . २ जोगिया से प्रीत किया दुख हो । प्रीत कियाँ सुख ना मोरी सजनी जोगी मित न कोइ । रात दिवस कल नाहिं परत है तुम मिलियाँ बिनि मोइ । ऐसी सूरत या जग माहीं, फेरि न देखी सोइ । मीरा के प्रभु कब रे मिलोगे, मिलियाँ आँणद होइ ।। [ मीरा पदा० पद सं० ५७ ] ३. जाबा दे जाबा दे जोगी किसका मीत।
सदा उदास रहे मोरी सजनी निपट अटपटी रीत ।।
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