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महाराज छत्रसाल ।
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चाहते थे। इस समाचारको पाकर ये ओरछा की ओर बढ़े पर महारानी गणेश कुँअरो बीचमें ही प्रा मिली और क्रोध शान्त होगया।
ओरछेसे ये सीधे ग्वालियर आये। यहाँ हमारे पूर्व परिचित सेनापति तहबरखाँ सूबेदार थे। इनमें इतना साहस कहाँ था जो बँदेलोसे लड़ सके-बिचारेने डर कर चौथ देना स्वीकार कर लिया और २००००) देकर किसी प्रकार पीछा छुड़ाया। इस समाचारको पाते ही औरङ्गजेबने उनको राजलेवासे निकाल दिया।
इसके पीछे इन्होंने भेलसाके किलेको घेरा। शीघ्र ही किले. दारने हार मान ली और उज्जैनतक वह सारा प्रान्त इनके हाथमें प्रागया। ___यह समाचार भी औरङ्गजेबको मिला। इस बार उसने शेख अनवरखाँके साथ एक बड़ी सेना भेजी। शेखजीने भेलसेंसे मऊ जाने का मार्ग रोक लिया और वहाँ बैठे बैठे छत्रसालको पकड़ लेने या मार डालनेकी आशामें पड़े रहे । इनके पड़ावपर छत्रसालने अचानक रातमें धावा मारा । थोड़ी ही देरके युद्धके पश्चात् मुसलमानी सेनाके पैर उखड़ गये। स्वयं -शेखजी पकड़े गये । और बहुतसे सिपाही मारे गये । कई दिनतक बन्दी रह कर, अनवर खाँने सवालाख रुपये छत्रसालको भेंट किये और चौथ देनेका वचन दिया। तब उनको छुटकारा मिला। परन्तु औरङ्गजेबने क्रुद्ध होकर इनको भी पदच्युत कर दिया।
शेख अनवरके पास एक परमसुन्दरी वेश्या थी। अनवरके साथ ही यह भी पकड़ ली गयी थी। जब शेखजी छोड़े गये तो छत्रसालने उसे भी छोड़ दिया; पर उसने जाना स्वीकार न
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