SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir अनवरसां और सदरहीन । ७५ - - खएडमें पाये जाते हैं। जामनगर जहाँ प्राणनाथजीने जन्म लिया था और पना जहाँ उन्होंने शरीर त्याग किया इनके लिये तीर्थस्थान हैं। इनकी संख्या कई सहस्र होगी पर इनमेंसे अधिकांश आजकल वैष्णवों में सम्मिलित होगये हैं। इसीलिये मर्दुमशुमारीमें इनकी ठीक ठीक गणना नहोसकी। जैसा कि ऊपरकी बातोसे विदित होता है, प्राणनाथजीका सत्सङ्ग कई वर्षतक छत्रसालको प्राप्त हुआ। इसका उनके जीवनपर क्या प्रभाव पड़ा वह स्पष्ट है। वे न केवल अपने सांसारिक कर्त्तव्यपथपर पहिलेसे भो अधिक दृढ़ होगये किन्तु जिस हिन्दू धर्मकी रक्षाका बीड़ा उठाकर वे मुगलोंसे लड़ने खड़े हुए थे उसके आन्तरिक तत्वोंका योग द्वारा स्वयं अनुभव करनेसे उनकी निष्ठा उसमें और भी पुष्ट हो गयी और वे दूसरोको भी सन्मार्गगामी बना सके। सद्गुरुकी सेवा करनेसे उनको धर्मका शास्त्रोक्त फल मिला-संसारमें अभ्युदय हुआ और देहत्यागके पीछे निःश्रेयसकी प्राप्ति हुई। ११. अनवरखाँ और सदरुद्दीन । जिस समय छत्रसाल दिग्विजयमें लग रहे थे उन दिना ओरछा राज्यकी अवस्था अच्छी न थी। महाराज सुजान सिंहके उत्तराधिकारी इन्द्रमणि ( इन्दमन ) अभी बालक थे। सुजानसिंहकी मातामही महारानी गणेश कुँअरी राज्यका प्रबन्ध कर रही थीं । परन्तु कर्मचारियोंके ऊपर कोई कड़ी दृष्टि न थी। वे राज्यका धन खुल कर लूट रहे थे और कदाचित् छत्रसालका भी विरोध किया For Private And Personal
SR No.020463
Book TitleMaharaj Chatrasal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy