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अनवरसां और सदरहीन ।
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खएडमें पाये जाते हैं। जामनगर जहाँ प्राणनाथजीने जन्म लिया था और पना जहाँ उन्होंने शरीर त्याग किया इनके लिये तीर्थस्थान हैं। इनकी संख्या कई सहस्र होगी पर इनमेंसे अधिकांश आजकल वैष्णवों में सम्मिलित होगये हैं। इसीलिये मर्दुमशुमारीमें इनकी ठीक ठीक गणना नहोसकी।
जैसा कि ऊपरकी बातोसे विदित होता है, प्राणनाथजीका सत्सङ्ग कई वर्षतक छत्रसालको प्राप्त हुआ। इसका उनके जीवनपर क्या प्रभाव पड़ा वह स्पष्ट है। वे न केवल अपने सांसारिक कर्त्तव्यपथपर पहिलेसे भो अधिक दृढ़ होगये किन्तु जिस हिन्दू धर्मकी रक्षाका बीड़ा उठाकर वे मुगलोंसे लड़ने खड़े हुए थे उसके आन्तरिक तत्वोंका योग द्वारा स्वयं अनुभव करनेसे उनकी निष्ठा उसमें और भी पुष्ट हो गयी और वे दूसरोको भी सन्मार्गगामी बना सके। सद्गुरुकी सेवा करनेसे उनको धर्मका शास्त्रोक्त फल मिला-संसारमें अभ्युदय हुआ और देहत्यागके पीछे निःश्रेयसकी प्राप्ति हुई।
११. अनवरखाँ और सदरुद्दीन । जिस समय छत्रसाल दिग्विजयमें लग रहे थे उन दिना ओरछा राज्यकी अवस्था अच्छी न थी। महाराज सुजान सिंहके उत्तराधिकारी इन्द्रमणि ( इन्दमन ) अभी बालक थे। सुजानसिंहकी मातामही महारानी गणेश कुँअरी राज्यका प्रबन्ध कर रही थीं । परन्तु कर्मचारियोंके ऊपर कोई कड़ी दृष्टि न थी। वे राज्यका धन खुल कर लूट रहे थे और कदाचित् छत्रसालका भी विरोध किया
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