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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रारम्भिक कार्यवाही। ५१ - थी कि अपना काम निकल जानेपर महाराज उनका साथ छोड़ देंगे, उन्होंने खुले शब्दों में कह सुनायी। उन्होंने महारा. जको भली भाँति समझा दिया कि वे केवल कोरी बातोले सन्तुष्ट होनेवाले न थे और यदि महाराजको उनसे काम लेना हो तो उनकी सहायता करनी होगी और स्वयं इस दुष्कर काममें योग देना होगा। ___ महाराज सुजानसिंहने देखा कि इस बार टट्टीकी ओटमें शिकार नहीं हो सकता। उनकी जो यह हार्दिक इच्छा थी कि मुग़लोंका प्रतिरोध भी हो जाय और मुझे कुछ करना भी न पड़े, वह पूर्ण न हुई। इसलिये उन्होंने शपथ खा कर छत्रसालके साथ योग देनेका वचन दिया और उसके समर्थनमें कुछ द्रव्य भी दिया। अपने लिये कुछ कालमें अधिक बल संग्रह करके मिलने का बहाना करके उस समयके लिये उन्होंने पीछा छुड़ाया। - छत्रसालने भी अधिक प्राग्रह न किया । उनको सुजान सिंहकी बातोपर पूरा विश्वास न आया हो, पर इतना निश्चय था कि कमसे कम कुछ कालके लिये वे उनका विरोध नहीं कर सकते थे। जबतक औरङ्गजेब क्रुद्ध होकर अपनी सारी शक्ति छत्रसालपर एकत्रित करके न लगा दे तबतक सुजानसिंह भययुक्त नहीं हो सकते थे और इसीलिये तबतक छत्रसालसे मिल कर रहनेमें ही उनका लाभ था। कार्यारम्भके समय ही शत्रुओकी न्यूनतासे लाभ होता है और सुजानसिंहके मिलनेसे छत्रसालका एक प्रबल विरोधी सम्प्रति चुप हो गया और द्रव्यसे तो बहुत कुछ काम भी निकाला जाता था। यही सब सोच कर वे ओरछासे बिदाई लेकर सुखी सुखी चले आये। For Private And Personal
SR No.020463
Book TitleMaharaj Chatrasal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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