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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ५० महाराज छत्रसात। कामको करते हैं तो पृथ्वीभरमें अपकीर्ति फैलेगी और परलोकमें नरक-यातना भुगतनी होगी। एक हिंदू राजाके लिये देवमंदिर तुड़वानेसे बढ़कर निंद्य और गर्हित दूसरी क्या बात हो सकती है ? परंतु ऐसा न करनेपर राज्य भ्रष्ट होकर अनेक कष्ट सहन करने पड़ेंगे। कुछ समझमें नहीं आता था कि क्या किया जाय;"भई गति साँप, छु दर केरी"। ___ ऐसे ही अवसरपर उनकोछत्रसाल की सुध पायी। उन्होंने सोचा कि यदि छत्रसाल मुगलोंके विरोधपर खड़े कर दिये जा सके तो अपना काम बन जाय, साँप भी मर जाय और लाठी भी न टूटे । इसी उद्देश्यसे उन्होंने छत्रसालको बुलवाया था। वहाँ पहुँच कर छत्रसालसे और महाराजसे भेंट हुई । साधारण लौकिक उपचारोंके उपरांत तत्वकी छिड़ी। सुजान सिंहने औरंगजेबकी कुटिल इच्छाओंकी कथा कह सुनायी और उनके विरोध करनेकी अपनी इच्छा प्रकट की। जो नीति उन्होंने सोची थी वह तो स्पष्ट रूपसे कही नहीं गयी; छत्रसालको यही प्रतीत करानेकी चेष्टा की गयी कि महाराज, औरंगजेबसे धर्मरक्षणार्थ लड़नेके लिये सन्नद्ध हैं। छत्रसालसे भी इस काममें सहायता देनेके लिये कहा गया। ये तो इसका बीड़ा पहिलेसे ही उठा चुके थे। औरंगजेबके इस नवीन अत्याचारके समाचारने सङ्कल्पको और पक्का कर दिया। परन्तु महाराज ओरछाके शब्दोंपर इनको विश्वास न था। पहिले इन्होंने इनके कुलके साथ और देशसेवाके साथ ऐसा अयुक्तियुक्त द्वेषपूर्ण व्यवहार किया था कि अब उनके सच्चे वचनोपर भी विश्वास होना कठिन था। छत्रसालने यह बात महाराज सुजानसिंहपर विदित कर दी । वे महाराजकी नीतिको समझ गये थे और उनको जो आशङ्का For Private And Personal
SR No.020463
Book TitleMaharaj Chatrasal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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