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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir जुझारसिंह और शाहजहाँ। - - - - उनको क्षमा कर देंगे। परन्तु बुन्देलोने इन शौको स्वीकार न किया। अतः वर्षा ऋतु समाप्त होनेपर मुगल सेनाने बुन्देलखण्डपर चढ़ाई की। संवत् १६६२ (सन् १६३५)-के आश्विन कार्तिकमें ओरछा ले लिया गया और महाराजाको धामुनीमें शरण लेनी पड़ी। धामुनीके गढ़में कुछ सिपाहियों को छोड़ कर जुझारसिंह प्राचीन गोंड राजधानी चौरागढ़ को चले गये। यहाँ भी मुगलोंने इनका पीछा न छोड़ा। इनको आपत्ति यह थी कि साथमें स्त्रियों, बच्चों और धन-सम्पत्तिको सँभालना पड़ता था; दूसरे, गोंड लोग परम शत्रु हो रहे थे, और जहाँ अवसर मिलता, लूटनेमें कसर न करते थे, न इनको सोनेका समय मिलता था और न खानेका, जहाँ कहीं थोड़ी देरके लिये ठहर जाते, मुगल लोग सरपर श्रा जाते और फिर भागना पड़ता; गोंडोंको लालच देकर मुग़लोंने और उत्तेजित कर दिया था। चन्द नामक गोंड राज्यकी सीमापर जुझारने रुक कर मुग़ल सेनाका सामना किया; परन्तु परास्त होकर पीछे हटना पड़ा। जहाँतक हो सका, अनेक स्त्रियोको उनके सतीत्वकी रक्षाके लिये बुंदेलोने आप ही मार डाला। परन्तु सैकड़ों स्त्रियाँ मुग़लोंके हाथ लगीं। उनके साथ मुसलमानोंने अपना स्वाभाविक असभ्य प्राचार किया। वे बलात् हरमों में डाल दी गयीं और उनके दुःखमय दिन मुग़लवंशके पापपूर्ण जीवनकी शीघ्र समाप्तिके लिये प्रार्थना करनेमें व्यतीत हो गये। कितने ही बालक मार डाले गये । जुझारसिंहके दो पुत्र और एक पौत्र बलात् मुसलमान बनाये गये । उनका एक और पुत्र उदयभानु अपने सहायक श्यामदउाके साथ पकड़ा गया और मुसलमानी धर्म अङ्गीकार न करनेपर मार डाला गया । For Private And Personal
SR No.020463
Book TitleMaharaj Chatrasal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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