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महाराज छत्रसाल ।
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२. जुझारसिंह और शाहजहाँ। शाहजहाँके सिंहासनारोहणसे बँदेलोंके इतिहासने पलटा खाया। संवत् १६८५ ( सन् १६२% )-में खानजहाँ लोदी नामका राजद्रोही ओरछेकी ओरसे भागा। परन्तु जुझार सिंहने उसके रोकनेका कोई प्रयत्न न किया। इससे बादशाह प्रकृत्या रुष्ट हुआ। पर ४ वर्ष पीछे अवसर पाकर जुझारसिंहने खानजहाँपर आक्रमण करके सम्राटको प्रसन्न कर लिया । और राज्यका शासन हरदौलको देकर स्वयं मुगल सं नाके साथ दक्षिणको गये। वहाँसे लौटनेपर उनको यह सन्देह हुअा कि हरदौलने महारानीपर कुदृष्टि डाली है और बीर हरदौलको हठात् विष पीना पड़ा। इस अत्याचारसे सारी प्रजा काँप उठी और आज बुन्देलखण्ड में गाँध गाँवमें हरदौलकी पूजा होती है।
कुछ काल शान्त रहकर जुझारसिंहने चौरागढ़ नामक गोंड राज्यको जीत लिया और वहाँके राजा प्रेमनारायणको मारकर बहुतसा धन लूट लिया। शाहजहाँने जुझारसे इस लूटमें भाग माँगा। यह बुंदेलोको सम्मत न था और जुझारसिंहने युद्ध करनेका विचार किया।
शाहजहाँने तीन सेनापतियोंके साथ तीन सेनाएँ भेजी जो बुंदेलखण्डको तीन ओरसे घेर लेने के लिये पर्याप्त थीं। इन तीनोंके ऊपर भावी सम्राट् औरङ्गजेब नियत किये गये। मुग़ल सेनामें कमसे कम २२००० सिपाही थे और बुंदेलोकी संख्या १५००० से भी कम थी।
पहिले जुझारसिंहसे यह कहलाया गया कि यदि वे अपने राज्यका कुछ अंश और ३० लाख रुपया दें तो सम्राट
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